मैने सोच लिया है इस बार
जब भी शहर जाउंगा,
एक खाली जगह देख कर
सजा दूंगा अपने
सारे ज़ख्म,
सुना है शहरों मे
कला के पारखी
रहते है,
सुंदर और नायब चीजों,
के दाम भी अच्छे मिलते है वहां।
पर डरता हूं ये सोच कर,
जंगली फ़ूलो का गुलदस्ता,
कोई भी नहीं सजाता अपने घर में!
खास तौर पे बेजान शहर में!
बढ़िया भावपूर्ण रचना .....
ReplyDeleteBadiya.. Very Imotional.Thanks.
ReplyDeletebahot achchi lagi choti si kavita.
ReplyDeleteरचना तो बहुत ही बढ़िया है!
ReplyDelete--
मगर गुलदस्ते में जंगली फूलों का दम घुट सकता है!
अरे साहब,
ReplyDeleteक्यों मार्केट की चकाचौंध में लाकर उनका जीवन दूभर करने की सोच रहे हैं?
’जहां का फ़ूल है वो, वहीं पर वो खिलेगा’
बहुत शानदार।
bahut hi achhe bhaw
ReplyDeleteबेहतरीन भाव---------कल के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
ReplyDeleteजंगली फूल पौधों पर ही अच्छे लगते हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना !
वाह बहुत हो नायाब लिखा है ... जख्म सज़ा दूँगा ... शहर में ... ग़ज़ब के भाव ..
ReplyDeletevery good.
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