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Saturday, November 6, 2010

नींद और ख्वाब!

मैं रोज़ मरता  हूँ!
लोग दफ़नाते ही नहीं।

मैं मोहब्बत हूं!
लोग अपनाते ही नहीं।

इन्तेज़ार बुत हो गया!
आप आते ही नहीं।

नींद चुभन है!
ख्वाब पलकॊं से जाते ही नही।

मैं बुरा हूँ!
आप फ़रमाते ही नहीं।

माँ से अभी बिछडा है!
ऐसे बच्चे को बहलाते नहीं।

ज़िन्दगी सजा है!
लोग जीते हैं,मर जाते नहीं। 


भूख से एक और मौत हुई!
लोग अजीब हैं शर्माते ही नहीं।

13 comments:

  1. हम तो तैयार हैं, आप बुलाते ही नहीं,

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  2. हमने दिया टिप्पणी, आप तो देते ही नहीं ...

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  3. भूख से एक और मौत हुई!
    लोग अजीब हैं शर्माते ही नहीं।
    खुबसूरत शेर बधाई

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  4. har bat bahoot sateek......
    .
    .
    muskarahat hoo mai
    log mujhe deha ab mukarate bhi nahi

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  5. सोचने पर विवश करती रचना

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  6. ज़िन्दगी सजा है!
    लोग जीते हैं,मर जाते नहीं।
    waah

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  7. मरने पर न दफनाना
    मोहब्बत पर न अपनाना
    इंतजार पर न आना
    नींद पर न आना
    बुरे पर न फरमाना
    माँ से बिछड़े को न बहलाना
    जिन्दगी अगर सजा है तो मौत का न आना
    भूख से मौत पर न शर्माना
    इंसानियत नहीं हैवानियत है
    इससे अच्छा है जीते जी मर जाना

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  8. नींद चुभन है!
    ख्याब पलकॊं से जाते ही नही..

    बहुत कुछ कहती हुयी .. चंद लाइने कभी कभी बहुत कुछ कह जाती हैं ... लाजवाब ...

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  9. Wah!! bhai jaan kamal ka likhte hayn aap...apki rachna sonchne par badhya karti hay..aapko padhne ke liye follow kar raha hun..

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  10. @अरशद अली जी,
    "सच में" पर आपका स्वागत है!

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  11. behtareen hai.........mere paas shabdon ki kami hai.

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  12. आपको पहली बार पढ़ा ..क्या खूब लिखा है आपने ..सब की सब रचनाएँ बढ़िया हैं......शुक्रिया !!!!

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