मेरे दादा जी,
सवेरे चींटियों को,
आटा खिलाने जाते थे!
मेरे पिता जी
जब सवेरे बाहर जाते थे,
तो चींटिंयाँ,
पैरों से न दब जायें
इस का ख्याल रखते थे,
मैं जब walk करता हूँ,
तो चीटियाँ
दिखती ही नहीं!
मेरा बेटा सवेरे
उठता ही नहीं,
पता नहीं क्या हो गया है?
इंसान,
चीटिंयों,
नज़र
और समय को!
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteआपको भी नववर्ष शुभ हो!
Deleteब्लॉग बुलेटिन की ५५० वीं बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन की 550 वीं पोस्ट = कमाल है न मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपका तहे दिल से शुक्रिया मेरी बात अपने पाठकों तक पहुँचाने के लिये! आभार.
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा |
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