Tuesday, November 11, 2014

एक दिन

एक दिन
दोपहर बीते
आना!
नहीं शाम को,
नहीं,
तब तो मैं
होश में आ चुका होता हूँ।

सारे मिथक,
और सच
उजागर कर दूँगा,
बे हिचक!

हाँ मगर,
अकेले नहीं!
साथ में हो तुम्हारे,
सारे झूठ ,
वो भी
एकदम
नंग धडंग
जैसे पैदा हुये थे वो!

Friday, April 4, 2014

व्हाइट वाला’ब्लैक बोर्ड’

व्हाइट वाला’ब्लैक बोर्ड’लगाना ही होगा,
शब्द अपने मतलब,खोते जा रहे हैं!

बातों का जंगल घना हो चला है,
लोग फ़िर भी लफ़्ज़, बोते जा रहे हैं!

सुबुह का सूरज भी बूढा हो चला है,
लोग जगते ही नहीं, सोते जा रहे हैं!

अब चलों मझधार में ही घर बना लो,
सब किनारे, कश्तियाँ, डुबोते जा रहे है!

मुस्कुराहटें भी कुछ कुछ ग़मज़दा हैं,
अश्क भी रोते बिलखते आ रहें है!

Sunday, February 2, 2014

ज़िन्दगी!

दर्द की चट्टान से रिसती,
पानी की धार
ज़िन्दगी,

जून की दोपहर में,
चढता बुखार
ज़िन्दगी,

जागी आँखों में,
नींद का खुमार
ज़िन्दगी,

खुशी और ग़म की,
लटकती  तलवार,
ज़िन्दगी,

भरी आँखों के,
सावन में मल्हार,
ज़िन्दगी,

एक नये साज़ के,
टूटे से तार,
ज़िन्दगी,

सूखी फ़सल के बाद,
लाला का उधार,
ज़िन्दगी,

भूखे पेट,चोटिल जिस्म को,
माँ का दुलार ,
ज़िन्दगी,

बनावट के दौर में,
होना आँखों का चार,
ज़िन्दगी,

एक ख़फ़ा दोस्त की,
अचानक पुकार,
ज़िन्दगी,

Monday, January 6, 2014

अथ: नर उवाच:!

जीवन सरक जाता है,
एक दम चुपचाप,
बिना बताये,
उन सब,
पदार्थों, और परिस्थितियों की ओर,
जो किन्चित हमें,
ढकेल देती हैं,
नितान्त
एकाकीपन और मृगमारिचिका की ओर,
जहाँ, है, बस वियोग और पछतावा,
सीता,शकुन्तला,अहिल्या.....
और भी न जाने किस किस की तरह!