"सच में!"
दिल की हर बात अब यहाँ होगी, सच और सच बात बस यहाँ होगी
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गैर
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Tuesday, August 16, 2011
वीराने का घर
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लोग बस गये जाकर वीराने में, सूना घर हूँ मैं बस्ती में रह जाउँगा। तुम न आओगे चलों यूँ ही सही, याद में तो मैं तुम्हारी आऊँगा। पी चुका...
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Sunday, March 27, 2011
"मुकम्मल सुकूँ"!
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चुन चुन के करता हूँ, मैं तारीफ़ें अपने मकबरे की , मर गया हूँ? क्या करूं ! ख्वाहिशें नहीं मरतीं! गुज़रता हूँ,रोज़, सिम्ते गुलशन से, ...
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Wednesday, May 5, 2010
प्लीज़!
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इस बार ऐसा करना, जब बिना बताये आओ, किसी दिन तो चुपचाप चुरा कर ले जाना, जो कुछ भी, तुम्हें लगे, कीमती, मेरे घर, जेहन, या श...
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Wednesday, November 25, 2009
आम ऒ खास का सच!
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मेरा ये विश्वास के मैं एक आम आदमी हूं, अब गहरे तक घर कर गया है, ऐसा नहीं के पहले मैं ये नहीं जानता था, पर जब तब खास बनने की फ़िराक में, ...
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Wednesday, October 14, 2009
बस कह दिया!
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चमन को हम साजाये बैठे हैं, जान की बाज़ी लगाये बैठे हैं. तुम को मालूम ही नहीं शायद, दुश्मन नज़रे गडाये बैठे हैं. सलवटें बिस्तरों पे रहे...
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Monday, August 3, 2009
मौसम
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लीजिये मौसम सुहाने आ गये, हुस्न वालो के ज़माने आ गये बादलों का पानी कहीं न कम पडे, हम अपने आंसू मिलाने आ गये. मौत भी मेरी,फ़साना बन गयी, दु...
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