"सच में!"
दिल की हर बात अब यहाँ होगी, सच और सच बात बस यहाँ होगी
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बु्लबुल
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बु्लबुल
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Friday, May 14, 2010
’छ्ज्जा और मुन्डेर’
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कई बार शैतान बच्चे की तरह हकीकत को गुलेल बना कर उडा देता हूं, तेरी यादों के परिंद अपने ज़ेहन की, मुन्डेरो से, पर हर बार एक नये झ...
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Monday, July 6, 2009
नज़दीकियों का सच!
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इस रचना को जो तव्वजो मिलनी चाहिये थी, शायद नहीं मिली,इस लिये एक बार फ़िर से post कर रहा हूं. दूरियां खुद कह रही थीं, नज़दीकियां इतनी न थी। अ...
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Tuesday, June 9, 2009
नज़दीकियों का सच!
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दूरियां खुद कह रही थीं, नज़दीकियां इतनी न थी। अहसासे ताल्लुकात में, बारीकियां इतनी न थीं। चारागर हैरान क्यों है, हाले दिले खराब पर। बीमार-...
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