"सच में!"
दिल की हर बात अब यहाँ होगी, सच और सच बात बस यहाँ होगी
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मंज़िल
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Saturday, March 12, 2011
अश्रु अंजलि!(जापान को)
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जब भी कोशिश करता हूँ, गर्व करने की, कि मैं इंसान हूँ! एक थपेडा, एक तमाचा कुदरत का, हल्के से ही सही, कह के जाता है, कि "मैं...
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Saturday, February 26, 2011
मौसम-ए-गुल!
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मौसमें गुल है और हर तरफ़ खुमारी है, सरे आम क्या कहूँ,बात मेरी तुम्हारी है। गुलो ने पैगाम दिया है बसंत आने का, तितलियों ने फ़िज़ा की ...
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Monday, September 21, 2009
दरख्त का सच!
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मैने एक कोमल अंकुर से, मजबूत दरख्त होने तक का सफ़र तय किया है. जब मैं पौधा था, तो मेरी शाखों पे, परिन्दे घोंसला बना ,कर ज़िन्दगी को पर देते ...
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Tuesday, May 12, 2009
झूंठ के पावों के निशान!
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वो देखो दौड़ के मंज़िल पे जा पहुँचा, कौन कहता है के,'झूंठ के पावं' नही होते. मैं चीख चीख के सब को बताता रह गया, फिर ना कहना,'दीव...
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