Friday, March 26, 2010

कातिल की बात !

मैं कभी करता नहीं दिल की भी बात,
पूछते हो मुझसे क्यूं,महफ़िल की बात?

दिलनशीं बुतो की परस्तिश तुम करो,
हम उठायेगें, यहां संगदिल की बात। 

ज़ालिम-ओ-हाकिम यहां सब एक हैं,
कौन सुनता है यहां बिस्मिल की बात!

कत्ल मेरा क्यों हुया? तुम ही कहो,
मैं जानूं!क्या थी,भला कातिल की बात?

लहर खुद ही तूफ़ां से जाकर मिल गई!
कश्तियां करती रहीं साहिल की बात।

Monday, March 22, 2010

तलाश खुद अपनी!



इन्तेहा-ए-उम्मीदे-वफ़ा क्या खूब!
जागी आंखों ने सपने सजा लिये।


मौत की बेरुखी, सज़र-ए-इन्सानियत में,
अधमरे लोग हैं,गिद्दों ने पर फ़ैला लिये।


चाहा था दुश्मन को दें पैगाम-ए-अमन
दोस्तों ने ही अपने खंजर पैना लिये।


भीड में कैसे मिलूंगा, तुमको मैं?
ढूंडते हो खुद को ही,तुम आईना लिये!

Thursday, March 11, 2010

ख्वाहिश!

तेरे मेरे 
शाम सवेरे,
कभी उजाले
कभी अंधेरे.

मन मेरा,
ज्यूं ढलता सूरज
गहरे बादल,
गेसू तेरे,

मैं एकाकी
तू भी तन्हा
यादों में आ
साथी मेरे

खुली आंख से
सपना जैसा,
तेरी आंख में
आंसू मेरे,

दुनियां ज़ालिम,
सूखे उपवन
दूर बसायें
अपने डेरे,

क्या जादू है?
मै न जानूं!
नींदें मेरी,
सपने तेरे|

Thursday, March 4, 2010

कल्कि और कलियुग!



बहुत सोचने पर भी ,समझ में तो नहीं आया,
पर मानना पडा कि,


काल कालान्तर से कुछ भी नहीं बदला,
मानव के आचरण में,
और न हीं देव और देव नुमा प्राणिओं के,


पहले इन्द्र पाला करते थे,
मेनका,उर्वषि आदि,
विश्वामित्र आदि को भ्रष्ट करने के लिये,
और वो भी निज स्वार्थवश,


और अब स्वंयभू विश्वामित्र आदि,
पाल रहे हैं,
मेनका,उर्वषि..........आदि, आदि
तथा कथित इन्द्र नुमा हस्तियों को वश मे करने के लिये.


बदला क्या....?
सिर्फ़ काल,वेश, परिवेश,और परिस्थितियां,
मानव आचरण तब भी, अब भी........
कपट,झूठं,लालच, आडम्बर,वासना, हिंसा और..




नश्वर एंव नापाक होते हुये भी,




स्वंयभू "भगवान" बन जाने की कुत्सित अभिलाषा.......