ये सब हैं चाहने वाले!और आप?

Tuesday, May 4, 2010

आप ही कहो,क्या सच है?

औरतें भी इन्सान जैसी हो गईं है,
माँ थीं वो, हैवान जैसी हो गईं हैं!

निरुपमा ने ये शायद  सोचा नहीं था,
आधुनिकता परिधान जैसी हो गई है।

माधुरी को भी ये कब पता था,
अय्यारी ईमान जैसी हो गई है।

खिलखाती खेलती थी बेटी मेरी,
खबरें सुन कर,हैरान जैसी हो गई है। 

5 comments:

  1. खिलखाती खेलती थी बेटी मेरी,
    खबरें सुन कर,हैरान जैसी हो गई है।

    बहुत ही मार्मिक और हकीकत से भरे शेर प्रस्तुत किये हैं आपने!

    ReplyDelete
  2. खिलखाती खेलती थी बेटी मेरी,
    खबरें सुन कर,हैरान जैसी हो गई है।

    क्या बात है ... बहुत सुन्दर ढंग से लिखी गयी रचना है ...

    ReplyDelete
  3. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

    ReplyDelete
  4. खिलखाती खेलती थी बेटी मेरी,
    खबरें सुन कर,हैरान जैसी हो गई है..

    सच्चाई को बयान कर रहा है यह शेर .... गहरी चोट करती ये ग़ज़ल ... कमाल है ...

    ReplyDelete

Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.