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Monday, July 6, 2009

नज़दीकियों का सच!

इस रचना को जो तव्वजो मिलनी चाहिये थी, शायद नहीं मिली,इस लिये एक बार फ़िर से post कर रहा हूं.

दूरियां खुद कह रही थीं,
नज़दीकियां इतनी न थी।
अहसासे ताल्लुकात में,
बारीकियां इतनी न थीं।

चारागर हैरान क्यों है,
हाले दिले खराब पर।
बीमार-ए- तर्के हाल की,
बीमारियां इतनी न थीं।

रो पडा सय्याद भी,
बुलबुल के नाला-ए- दर्द पे।
इक ज़रा सा दिल दुखा था,
बर्बादियां इतनी न थीं।

उसको मैं खुदा बना के,
उम्र भर सज़दा करूं?
ऐसा उसने क्या दिया था,
मेहरबानियां इतनी न थीं।


9 comments:

  1. "kahta hai foonk foonk gazalen ,shaayar dunai ka ,jala hua ,aanshu ,sookhaa ,kahkahaa hua ,pani ,sukha to hawa hua .Aap tipani ke mohtaaz nahin hain,nazm aur gazal ke karigar hain huzur aapto .veerubhai

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  2. तहे दिल से शुक्रिया आप की होसला अफ़ज़ाई का।

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  3. Aapke padhne ke liye,apne khud ke comment box me kuchh likha hai...! Iltijaa hai,aap zaroor padhen, aur meree rahnumaayee karen..!
    Haan, sach hai, is rachnaa ko jitnee tavajjo milnee chahiye thee, utnee nahee milee..mai bhee hairan hun...!
    Jabki, ye aapkee behtareen rachnaon me se ek hai..! khaas kar ye hissa...!

    Nahee, ye tippanee kee mohtaajee nahee...ek samvaad kee chaahat hai...gar kisee se samvaad na ho to phir ham, blogpe likhe kyon? Dairy me likhen..!
    Leo ji, aap se sahmat hun..

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  4. हम आपकी रचनाएँ पूरी शिद्दत से पढ़ते हैं।
    रचना सुन्दर है,
    बधाई।

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  5. ’मयंक’ जी,
    शुक्रिया आपकी, हौसलाअफ़ज़ाई बहुत माने रखती है.

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  6. बहुत ही सुन्दर रच्ना है जो हृदय छू लेती है

    ---
    गुलाबी कोंपलें

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  7. उसको मैं खुदा बना के,
    उम्र भर सज़दा करूं?
    ऐसा उसने क्या दिया था,
    मेहरबानियां इतनी न थीं।


    wahhhhhhhhhhhhhhh kya baat kahi hai

    daad hazir hai kubool karen

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  8. दूरियां खुद कह रही थीं,
    नज़दीकियां इतनी न थी।
    अहसासे ताल्लुकात में,
    बारीकियां इतनी न थीं।

    आपकी कलम में हर जज्बे की तासीर है....
    बस लिखते रहे...
    हम आते रहेंगे...
    और अगर हम भूल जाएँ तो याद दिलाते रहे....

    नजदीकियों के भरम में क्यों जी रहे हो
    बहुत पहले से तुझसे दूर जाने लगे हैं
    'अदा'

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