जब भी आपको झूंठ बोलना हो!
(अब आज कल करना ही पडता है!)
एक काम करियेगा,
झूंठ बोल के, कसम खा लीजियेगा,
अब! कसम जितनी मासूम हो,
उतना अच्छा!!
बच्चे की कसम,
सच्चे की कसम,
झूंठ के लच्छे की कसम,
हर एक अच्छे की कसम,
अच्छा माने
गीता,कुरान,
बच्चे की मुस्कान,
तितली के रंग,
कोयल की बोली,
बर्फ़ की गोली,
तोतली बोली,
मां की डांट
पल्लू की गांठ,
...आदि,आदि
चाहे जो भी हो कसम ’पाक’ लगे!
लोग सच मान लेगें!
अगर न भी मानें,
तो भी कसम की लाज निभाने के लिये,
सच मानने का नाटक जरूर करेंगे!
दरअसल,
लोग झूंठे, इस लिये नहीं होते,
कि वो झूंठ बोलते हैं!
वो झूंठे तब साबित होते हैं,
जब वो झूंठ सुनकर भी,
उसे ’सच’ मान लेने का नाटक करते हैं!!
क्यों कि वो सच का सामना करने से,डरते हैं!
"सच में"
कसम तो मैं खाता नहीं!
पुराना सुभाषित है, ’सत्यं ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात, अप्रियं सत्यं मा ब्रूयात’
ReplyDeleteआज के संदर्भ में ’असत्यं ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात’
सच से कड़वा कुछ नहीं। वैसे कुनैन कड़वी ही होती है।
kya baat hai.aajkal yahi hota hai. narayan narayan
ReplyDeleteसच में ........
ReplyDelete"Hamesha ki tarah is baar bhi apne kuch naya likha hai"but i would like to say'ki jhoot ko sach maan lene wale jhoote sabit nahi hote, kyounki yeh is baat per bhi nirbhar karta hai ki woh jhoot unse bol kaun raha hai?'SACH'ka samna karne se darte hain? yeh bhi tow ho sakta hai ki pura 'sach'unko pata hi na ho.
ReplyDeleteझूठ को सच और फिर कसम से सच ...
ReplyDeleteक्या ग़ज़ब का शब्द संयोजन है ...
हा हा हा..झूठ बोलने और पकडे जाने का तरीका खूब bataya है आपने.. वैसे कसम तो मैं भी नहीं खता...बहुत ही ओछा सा प्रतीत होता है यूँ बात बात पर कसम खा लेना..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर इस बार अग्निपरीक्षा ....
Waah! Kya baat kah dee! Aisaa hee hota hai! Jhooth pakada naa jaye tab tak sach hota hai!
ReplyDeleteसच्च में, मैं भी कभी जूठ नहीं बोलता..
ReplyDeleteही ही ही ही