सच में ये ख्वाब,सब मिट्टी है।
सिकन्दर-ओ-सोहराब सब मिट्टी हैं।
ये ज्ञान,वो किताबें सब मिट्टी है।
ये सोने से तुलने का अहसास सब मिट्टी है।
वो मेरा है,मासूम है,आ जायेगा,
दिल की ये आस,छलावा,सब मिट्टी है।
मैं चला जाऊंगा ,मत पुकारो मुझे,
हाथ पकड के बस बिठाओ ज़रा।
दोस्त कुछ इस कदर पराये हैं,
कोई तो जाओ उन्हें बताओ ज़रा।
कभी तो थोडा करी़ब आओ ज़रा,
मैं खु़द को देखूं, नज़र मिलाओ ज़रा।
ज़ख्म मेरे भी गहरे हैं उतने,
इन्हें भुलाओ, मुस्कुराओ ज़रा।
मैं तुम्हें भूल जाऊं कैसे हो,
तुम मगर मुझको याद आओ ज़रा।
_कुश शर्मा
कोई जिन्दा मिले ,
तो बताऊं न!
डर कितना , बडा झूठ है!
पर तुम सब तो ,
लडे ही नहीं,
डर से डर गये,
और मर गये!
अब सत्य की शाश्वत शक्ति,
मुर्दे तो नहीं समझ सकते न!
इस लिये, तुम सब जो,
बुद्धिजीवी होने का दावा करते हो,
चीखो, और इससे पहले, कि
सब सच की राह ढूंढ़ने वाले,
झूठ का अंधेरा देख कर,
डर से या अज्ञान से मुर्दा हो जायें,
सत्य को स्वीकार करो,बताओ,
और तब तक चीखो जब तक,
सत्य!
करोड़ों बार बोले गये झूठ पर विजय न पा ले,
और तब छंट जायेगा ,
असत्य का वह तिमिर,
जिसने हमारी जीवन्त समझ को छीन कर,
हमें बना दिया है,
या तो शव अन्यथा,
मृत्यप्राय श्मशान वासी। ©2023 _कुश शर्मा