Tuesday, July 27, 2010

पेच-ओ-खम

रात काली थी मगर काटी है मैने,
लालिमा पूरब में नज़र आने लगी है।


डर रहा हूं मौसमों की फ़ितरतों से,
फ़िलहाल तो पुरव्वईया सुहानी लगी है।


छंट गयी लगता है उसकी बदगुमानी,
पल्लू को उंगली पर वो घुमाने लगी है।


मज़ा इस सफ़र का कहीं गुम न जाये,
मन्ज़िल सामने अब नज़र आने लगी है।


सीखता हूं,रेख्ते के पेच-ओ-खम मैं! 
बात मेरी लोगो को अब भाने लगी है।


*********************************
रेख्ता:Urdu language used for literature.
पेच-ओ-खम:Complications. 

Sunday, July 18, 2010

इंतेहा-ए-दर्द!



दर्द को मैं ,अब दवा देने चला हूं,
खुद को ही मैं बद्दुआ देने चला हूं!

बेवफ़ा को फ़ूल चुभने से लगे थे,
ताज कांटो का उसे देने चला हूं!

मर गया हूं ये यकीं तुमको नहीं है, 
खुदकी मय्यत को कांधा देने चला हूं!

Wednesday, July 14, 2010

वो लम्बी गली का सफ़र!



मैं हैरान हूं,
ये सोच के कि आखिर तुम्हें पता कैसे चला कि,
मैं तुमसे मोहबब्त करता था!


तुम्हारी सहेलियां तो मुझे जानती तक नहीं,


मैं हैरान हूं,
कि आखिर क्यों, तुम आ जाती थीं, छ्ज्जे पर,
जब मेरे गुज़रने का वख्त होता था,तुम्हारी गली से,


मैने तो कभी नज़र मिलाई नहीं तुमसे जान कर!


मैं हैरान हूं,
कि अब कहां मिलोगी तुम,एक उम्र बीत जाने के बाद,
क्यों कि मैं खुद तुम से नज़रें मिला कर कहना चाहता हूं,


हां! मैं मोहबब्त करता हूं तुमसे, बेपनाह! 


शायद मैं अब जान पाया इतने साल बाद के,
मैं क्यों साफ़ सडक छोड कर घर जाता था,
उस तंग और लम्बी गली से होकर!



Tuesday, July 13, 2010

अंखडियां!





अंखडियां!



अनकही, कही,
सुनी,अनकही,
भीगी अंखडियां!



सावन!
बैरी सावन!
भीगा घर आंगन,
तरसे मन!


खेल!
कराकोरम- कराची रेल

खरीदें पाकी ईरानी तेल

हम खेलें क्रिकेट खेल



हिंदी में और 'हाइकु' पढ़ने के लिए और इसके बारे में जानने के लिए Follow the link below! 


Monday, July 12, 2010

तितलियां और चमन!


चमन में गुलों का नसीब होता है,
जंगली फ़ूल पे कब तितिलियां आतीं है।

कातिल अदा आपकी निराली है,
हमें कहां ये शोखियां आतीं हैं।

एक अरसे से मोहब्बत खोजता हूं,
अब कहां तोतली बोलियां आतीं है!

गद्दार हमसाये पे न भरोसा करना,
प्यार के बदले में, गोलियां आतीं हैं।

घर मेरा खास था, सो बरर्बाद हुया,
हर घर पे कहां बिजलियां आतीं हैं?



Friday, July 9, 2010

सच बरसात का!

फ़लक पे झूम रही सांवली घटायें हैं,
बदलियां हैं या, ज़ुल्फ़ की अदायें हैं।


बुला रहा है उस पार कोई नदिया के,
एक कशिश है या, यार की सदायें हैं।


बूटे बूटे में नज़र आता है तेरा मंज़र,
मेरी दीवानगी है, या तेरी वफ़ायें हैं।


याद तेरी  मुझे दीवानवर बनाये है,
ये ही इश्क है,या इश्क की अदायें हैं।


दिल तो  मासूम है, कि तेरी याद में दीवाना है,
असल में  तो न घटा है, न बदली, न हवायें हैं! 

Monday, July 5, 2010

गुलों से बात!


अज़ीब शक्स है वो गुलो से बात करता है,
अपनी ज़ुरूफ़ से भरे दिन को रात करता है.

वो जो कहता है भोली प्यार की बातें,
खामोश हो के खुदा भी समात करता है,

मां बन के कभी उसके प्यार का जादू
एक जर्रे: को भी  काइनात करता है,

मेरे प्यार को वो भला कैसे जानेगा?
जब देखो मूंह बनाके बात करता है! 

Saturday, July 3, 2010

जंगली फ़ूलो का गुलदस्ता!!

मैने सोच लिया है इस बार
जब भी शहर जाउंगा,

एक खाली जगह देख कर
सजा दूंगा अपने 

सारे ज़ख्म,

सुना है शहरों मे 


कला के पारखी 


रहते है,


सुंदर और नायब चीजों, 


के दाम भी अच्छे मिलते है वहां।

पर डरता हूं ये सोच कर,



जंगली फ़ूलो का गुलदस्ता, 




कोई भी नहीं सजाता अपने घर में!




खास तौर पे बेजान शहर में!