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Tuesday, August 9, 2016

दिल की कही।

बिखर तो मैं जाऊं मानिन्द-ए-फूल मगर,
कोई ऐसा भी हो जो चुन लाये मुझको ।

गुज़रता जा रहा हूँ,बेवफा लम्हों की तरह,
कोई तो रोके, ज़रा पास बिठाये मुझको।

मेरी भी दास्ताँ कहाँ जुदा है तेरे फसाने से,
कोई तो बोले कभी, कोई बताये मुझको ।

झटक ही दे मानिन्द-ए-आब-ए-जुल्फ सही,
बनाके अश्क कोइ पलकों पे सजाये मुझको|

Friday, April 4, 2014

व्हाइट वाला’ब्लैक बोर्ड’

व्हाइट वाला’ब्लैक बोर्ड’लगाना ही होगा,
शब्द अपने मतलब,खोते जा रहे हैं!

बातों का जंगल घना हो चला है,
लोग फ़िर भी लफ़्ज़, बोते जा रहे हैं!

सुबुह का सूरज भी बूढा हो चला है,
लोग जगते ही नहीं, सोते जा रहे हैं!

अब चलों मझधार में ही घर बना लो,
सब किनारे, कश्तियाँ, डुबोते जा रहे है!

मुस्कुराहटें भी कुछ कुछ ग़मज़दा हैं,
अश्क भी रोते बिलखते आ रहें है!