कोई जिन्दा मिले ,
तो बताऊं न!
डर कितना , बडा झूठ है!
पर तुम सब तो ,
लडे ही नहीं,
डर से डर गये,
और मर गये!
अब सत्य की शाश्वत शक्ति,
मुर्दे तो नहीं समझ सकते न!
इस लिये, तुम सब जो,
बुद्धिजीवी होने का दावा करते हो,
चीखो, और इससे पहले, कि
सब सच की राह ढूंढ़ने वाले,
झूठ का अंधेरा देख कर,
डर से या अज्ञान से मुर्दा हो जायें,
सत्य को स्वीकार करो,बताओ,
और तब तक चीखो जब तक,
सत्य!
करोड़ों बार बोले गये झूठ पर विजय न पा ले,
और तब छंट जायेगा ,
असत्य का वह तिमिर,
जिसने हमारी जीवन्त समझ को छीन कर,
हमें बना दिया है,
या तो शव अन्यथा,
मृत्यप्राय श्मशान वासी। ©2023 _कुश शर्मा