एक दिन
दोपहर बीते
आना!
दोपहर बीते
आना!
नहीं शाम को,
नहीं,
तब तो मैं
होश में आ चुका होता हूँ।
नहीं,
तब तो मैं
होश में आ चुका होता हूँ।
सारे मिथक,
और सच
उजागर कर दूँगा,
बे हिचक!
हाँ मगर,
अकेले नहीं!
साथ में हो तुम्हारे,
सारे झूठ ,
वो भी
एकदम
नंग धडंग
जैसे पैदा हुये थे वो!
वो भी
एकदम
नंग धडंग
जैसे पैदा हुये थे वो!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-11-2014) को "नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795 पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका और प्रतिष्ठित मंच का आभार!
DeleteBahut badhiya
ReplyDeleteपसंद करने के लिये आपका बहुत बहुत आभार. "सच में" पर आते रहिये!
Deleteसारे झूट!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteआपका आभार!
Deleteउनको आइना दिखाना है शायद ...
ReplyDeleteक्या पता? दिगम्बर भाई, आज कल झूठ भी मूँह चिढा कर चले जाते हैं!
Delete:)
ReplyDelete:-) ! Thanx Dear Shekhar
Deleteबहुत सुन्दर बधाई
ReplyDeleteमैन भी ब्लोग लिखता हु और आप जैसे गुणी जनो से उत्साहवर्धन की अपेक्षा है
http://tayaljeet-poems.blogspot.in/
I don’t know how should I give you thanks! I am totally stunned by your article. You saved my time. Thanks a million for sharing this article.
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