कल शाम मैं समुन्दर के साथ था,
बडी ही अजीब बात है,
न तो मैं वहाँ उसके बुलावे पे गया था,
और न ही मुझे उम्मीद थी कि,
मैं कभी मिल पाऊगाँ,
"समुन्दर"जैसी बडी शैह से!
पर हर लम्हा जो मैं गुजार आया,
’समुन्दर’ के साथ,
अपने आप में ’एक मुकम्मल ज़िन्दगी’है!
आप को गर यकीं न आये,
तो अभी बंद करिये अपनी आँखें,
और मुकम्मल तन्हाई में,
कोशिश कीजिये,
समुन्दर को
सुनने की,
सूघंने की ,
अपनी ज़िल्द पर उसकी,
ठंडी मगर खारी हवा,
को महसूस करने की,
यकीं मानिये,
समुन्दर से गहरा और शांत कुछ भी नही!
और हम सब,
फ़िरते है यहाँ से वहाँ
लिये अपना अपना,
एक एक समुन्दर
प्यासे और अशांत!
और बेखबर भी कि,
हम सब एक समुन्दर है!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteफ़िरते है यहाँ से वहाँ
लिये अपना अपना,
एक एक समुन्दर
प्यासे और अशांत!
बिलकुल सत्य है यह ! हर मन में एक समंदर है और उसीकी तरह कभी वहाँ सुनामी सी स्थिति पैदा हो जाती है तो कभी अपार शान्ति और ठहराव भी मिल जाता है ! बहुत सुन्दर !
समंदर को आँख बन्द कर महसूस करना खुदा के संग खुद की भी इबादत है ... और खुद से मिलना वाकई आसान नहीं होता
ReplyDeleteफ़िरते है यहाँ से वहाँ
लिये अपना अपना,
एक एक समुन्दर
प्यासे और अशांत!
और बेखबर भी कि,
हम सब एक समुन्दर है!
’सच में’ हम समन्दर हैं लेकिन बेखबर समन्दर।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है, आभार।
यकीं मानिये,
ReplyDeleteसमुन्दर से गहरा और शांत कुछ भी नही!
बहुत खूब ! हर दिल में एक समंदर है ...
हम सब एक समुन्दर है----समुन्दर से भी बड़े....गहरे...
ReplyDeleteसम सब समंदर हैं अपने अंदर बहुत कुछ समाये फिरते हैं.
ReplyDeleteआप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
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