ऐ खुदा,
हर ज़मीं को एक आस्मां देता क्यूं है?
उम्मीद को फ़िर से परवाज़ की ज़ेहमत!
नाउम्मीदी की आखिरी मन्ज़िल है वो।
हर आस्मां को कहकशां देता क्यूं है?
आशियानों के लिये क्या ज़मीं कम है?
आकाशगंगा के पार से ही तो लिखी जाती है,
कभी न बदलने वाली किस्मतें!
दर्द को तू ज़ुबां देता क्यूं है?
कितना आसान है खामोशी से उसे बर्दाश्त करना,
अनकहे किस्सों को बयां देता क्यूं है?
किस्से गम-ओ- रुसवाई का सबब होते है|
क्या ज़रूरत है,
तेरे इस तमाम ताम झाम की?
ज़िन्दगी!
बच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी!
अच्छी पंक्तिया है ....
ReplyDeleteयहाँ भी आइये ........
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_06.html
बढिया लिखा है !!
ReplyDeleteहर आस्मां को कहकशां देता क्यूं है?
ReplyDeleteआशियानों के लिये क्या ज़मीं कम है?
आकाशगंगा के पार से ही तो लिखी जाती है,
कभी न बदलने वाली किस्मतें!
..... bahut hi achhi rachna , sambhaw ho to apne parichay ke saath 'vatvriksh' ke liye is rachna ko bhej dijiye rasprabha@gmail.com
ज़िन्दगी!
ReplyDeleteबच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी!बेहतर दुनिया के लिए बिलकुल सही सवाल....मगर जवाब......
@dimple,
ReplyDeleteसवाल का जवाब सिर्फ़ वो दे सकता है,जिसने कभी इस दुनिया को बनाया होगा!हम जिस्मधारी तो अभी युगयुगांतर तक तलाशते रहेंगे इस, और उन तमाम अनउत्तरित सवालों के जवाब,जो कब से काइनात के चलते रहने का सबब हैं। क्यो कि जीवन यात्रा और है क्या इसके सिवा?
Bahut achha likha hai!!!!It reminds me of one saying "CHALLENGING THE MEANING OF LIFE IS THE TRUEST EXPRESSION OF THE STATE OF BEING HUMAN"-Victor E Frank!
ReplyDeleteज़िन्दगी!
ReplyDeleteबच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी ...
सच है ... पर अगर ऐसा होता तो उसकी हस्ती को कौन मानता ...
बहुत लाजवाब लिखा है ...
"कविता" (http://kavitasbyshama.blogspot.com)आप सबने फ़रमाया:
ReplyDeleteशाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...
दर्द को तू ज़ुबां देता क्यूं है?
कितना आसान है खामोशी से उसे बर्दाश्त करना,
अनकहे किस्सों को बयां देता क्यूं है?
किस्से गम-ओ- रुसवाई का सबब होते है|
ज़िन्दगी...
बच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब..और..दिलनशीं..भी तो हो सकती थी!
वाह...बहुत खूबसूरत...
ईद की मुबारकबाद कुबूल फ़रमाएं.
September 11, 2010 11:22 PM
alka sarwat said...
बहुत सुन्दर और कंटीली नज़्म है ये
आखिर क्यूं.....
ईद मुबारक तहे दिल से
September 11, 2010 11:55 PM
VIJAY TIWARI 'KISLAY' said...
बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी.
- विजय
दर्द को तू ज़ुबां देता क्यूं है?
कितना आसान है खामोशी से उसे बर्दाश्त करना,
September 12, 2010 12:20 AM
वन्दना said...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (13/9/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
September 12, 2010 12:50 AM
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
बहुत खूबसूरत
September 12, 2010 2:45 AM
Majaal said...
मुश्किल ये है की जवाब पूछने भी उसकी के पास जाना पड़ेगा,और फिर वो जचाँ नहीं तो वापस भी नहीं आ सकते.. ये भी एक बेबसी है की यहीं गुजरा करना है ...
उम्दा अभिव्यक्ति ..
September 12, 2010 2:52 AM
shama said...
Sun le aiye khuda ke,itni khoobsoorat dua ya iltija tujhse phir kaun karega?
September 12, 2010 2:58 AM
'Vatvirch'पर मिली सराहनाऎं:
ReplyDeleteवन्दना said...
ज़िन्दगी!
बच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी!
काश ! ऐसा हो पाता …………।यही तो हर दिल की चाहत होती है।
September 15, 2010 11:06 AM
Mukesh Kumar Sinha said...
meri bhi yahi soch, kaaash aisa hi kuchh hota......jindagi jeena fir alag rang ki tarah dikhta.....ek dum anutha........!! lekin aisa hua nahi........kyonki upar wale ko har rang dekhna manjoor hai......:)
ek jaandaar kavita!!
September 15, 2010 12:17 PM
sadhana said...
काश ! आपकी लिखी हुई पंक्तियाँ सच हो पाती ...बहुत अच्छी पंक्तियाँ है..!!!
September 15, 2010 12:23 PM
इंदु पुरी गोस्वामी said...
दर्द को तू ज़ुबां देता क्यूं है?
कितना आसान है खामोशी से उसे बर्दाश्त करना,
अनकहे किस्सों को बयां देता क्यूं है?
किस्से गम-ओ- रुसवाई का सबब होते है'
सचमुच एक संवेदनशील मन.यूँ छलकते है जज्बात एक आर्मी ऑफिसर के?आश्चर्य नही हुआ,डिफेन्स सर्विसेज वालों के परिवार से हूं.
दर्द को जुबाँ ना मिलती तो दर्द घाव देता और घाव नासूर मे कब तब्दील हो जाता पता ही न चलता.
जिंदगी ....मासूम बच्चे की मानिंद...बहुत खूब लिखा.बधाई.
September 15, 2010 12:51 PM
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
ज़िन्दगी!
बच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी!
बहुत खूबसूरत
September 15, 2010 12:54 PM
arun c roy said...
bahut sunder kavita ! immandaar bhav hain aapke.. parichay aapka aur bhi aakarshit karta hai
September 15, 2010 1:01 PM
ρяєєтι said...
Sabhi ki khwaaish yahi hai jise aapne shabdo main baya kar diya... bahut khub...
September 15, 2010 2:17 PM
निर्मला कपिला said...
ज़िन्दगी!
बच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी!
ज़िन्दगी बेसबब होती तो ज़िन्दगी न होती। सबब मे तो दोनो ही होते हैं जब सबब हुया सुख जब सबब हुया दुख्। मगर दुख सहन करना मुश्किल होता है शायद तभी कविता गज़ल बनती है। सुन्दर रचना। शुभकामनायें।
September 15, 2010 5:45 PM
mala said...
बहुत खूब लिखा.....बधाई !
September 15, 2010 5:52 PM
पूर्णिमा said...
सत्य से साक्षात्कार कराती एक खुबसूरत कविता , अच्छी लगी
September 15, 2010 5:53 PM
गीतेश said...
सुन्दर रचना..... शुभकामनायें।
September 15, 2010 5:54 PM
Pankaj Trivedi said...
बहुत ही अच्छी संवेदना और अभिव्यक्ति...
September 15, 2010 7:17 PM
राजेश उत्साही said...
कुश जी आपकी कुशल अभिव्यक्ति । बधाई।
September 15, 2010 7:47 PM
वाणी गीत said...
जिंदगी बच्चे की मुस्कान सी भी तो हो सकती थी ...
अच्छी कविता !
September 16, 2010 7:40 AM
पी.सी.गोदियाल said...
दर्द को तू ज़ुबां देता क्यूं है?
कितना आसान है खामोशी से उसे बर्दाश्त करना,
अनकहे किस्सों को बयां देता क्यूं है?
किस्से गम-ओ- रुसवाई का सबब होते है
बहुत ही सुन्दर !
September 16, 2010 9:54 AM
ज़िन्दगी!
ReplyDeleteबच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी!............"सच में"
बहुत खूब
ReplyDeleteयार तूने ये क्या लिख डाला। अद्भु...
ReplyDeletevery Nice line
ReplyDeletePriyanka Pathak
http://dolafz.com/