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Thursday, March 22, 2012

चेहरे!


चेहरे!

अजीब,
गरीब,
और हाँ, अजीबो गरीब!
मुरझाये,
कुम्हलाये,
हर्षाये,
घबराये,
शर्माये,
हसींन,
कमीन,
बेहतरीन,
नये,
पुराने
जाने,
पहचाने,
और हाँ ’कुछ कुछ’ जाने पहचाने,
अन्जाने,
बेगाने,
दीवाने
काले-गोरे,
और कुछ न काले न गोरे,
कुछ कि आँखों में डोरे,


कोरे,
छिछोरे,
बेचारे,
थके से,
डरे से,
अपने से,
सपने से,
मेरे,
तेरे,
न मेरे न तेरे,
आँखें तरेरे,


कुछ शाम,
कुछ सवेरे,


घिनौने,
खिलौने,
कुछ तो जैसे
गैईया के छौने,


चेहरे ही चेहरे!


पर कभी कभी,
मिल नही पाता,
अपना ही चेहेरा!
अक्सर भाग के जाता हूँ मैं,


कभी आईने के आगे,
और कभी नज़दीक वाले चौराहे पर!


हर जगह बस अक्श है,परछाईं है,
सिर्फ़  भीड है और तन्हाई है !



17 comments:

  1. हर जगह बस अक्श है,परछाईं है,
    सिर्फ़ भीड है और तन्हाई है !

    भीड के भ्रम को उजागर करती रचना!!

    अद्भुत!!

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  2. जितनी भीड़, उतने अकेले..
    बहुत खूब कुश भाई।

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  3. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई.

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  4. सुन्गर रचना!
    नवसम्वतसर-2069 की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  5. सुन्दर प्रस्तुति ।

    नवसंवत्सर की शुभकामनायें ।।

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  6. हर जगह बस अक्श है,परछाईं है,
    सिर्फ़ भीड है और तन्हाई है !.....वाह बहुत खूब


    बस अपने से चेहरे ढूंढने से भी नहीं मिलते हैं .......

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  7. पर कभी कभी,
    मिल नही पाता,
    अपना ही चेहेरा!
    अक्सर भाग के जाता हूँ मैं,


    कभी आईने के आगे,
    और कभी नज़दीक वाले चौराहे पर!
    Wah!

    ReplyDelete
  8. आप सब पाठकों का शुक्रिया! समय देने और पसंद करने के लिये!मेहरबानी!

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  9. Mil nahi raha apna apna chehra ya maan nahi raha ki mera chehra Bhi hai in chehron mein ....Bahut prabhavi ...

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    Replies
    1. शायद दोनों ही बातें हैं! मन है ही,बहरूपिया तो चेहरा कैसे अछूता रहे इस गुण (अवगुण) से...!

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  10. सार्थक, सुन्दर सृजन, बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम प्रविष्टि पर भी पधारें.

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  11. सुन्दर एवं गहन प्रस्तुति....
    मेरी टिप्पणी दिखी नहीं सो दोबारा करती हूँ..

    सादर.

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  12. 9 Comments to comment form सहयोगी Blog "कविता"!

    अनुपमा पाठक said...
    चेहरों के हुजूम में भी तनहा और एकाकी खोया सा अपना ही चेहरा...
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

    March 25, 2012 11:22 PM
    दिगम्बर नासवा said...
    वाह ... फिर से मज़ा आया पढ़ के ...

    March 26, 2012 12:19 AM
    M VERMA said...
    बहुत खूब
    नूतन अंदाज़ और अंतर्द्वंद

    March 26, 2012 8:14 AM
    Poonam Agrawal said...
    Har jagah bas aks hai ,parchai hai ... bheed hai tanhai hai ...

    Sunder bhaav ...

    March 28, 2012 4:55 AM
    shama said...
    Bahut dinon baad aapne 'kavita' blog pe likha! Badaa hee achha laga!

    March 30, 2012 8:54 AM
    ana said...
    shabd nahi mil rahe hai tarif ke liye...bahut badhiya

    April 1, 2012 7:03 AM
    रविकर said...
    बुधवारीय चर्चा मंच पर है
    आप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

    charchamanch.blogspot.com

    April 3, 2012 4:24 AM
    रविकर said...
    बुधवारीय चर्चा मंच पर है
    आप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

    charchamanch.blogspot.com

    April 3, 2012 4:42 AM
    Kavita Rawat said...
    हर जगह बस अक्श है,परछाईं है,
    सिर्फ़ भीड है और तन्हाई है !
    ...bahut badiya...

    April 4, 2012 5:48 AM

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बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.