तपन हुस्न की कब ता उम्र रही है कायम,
मेरे सब्र की ज़मीं ने हर मौसम को बदलते देखा है।
अब ऐसी नींद भी खुदा किसी को न अता करे,
मैंने अक्सर अपनी रुह को ख्वाबों में जलते देखा है।
वख़त बुरा आये तो कभी दोस्तों को मत ढूँडो,
अँधेरी रात में कभी,साये को साथ देखा है?
हर चमकती सुबह को स्याह रात में ढलते देखा है,
हमने अपने खुदाओ को अक्सर बुत में बदलते देखा है।
मेरे सब्र की ज़मीं ने हर मौसम को बदलते देखा है।
अब ऐसी नींद भी खुदा किसी को न अता करे,
मैंने अक्सर अपनी रुह को ख्वाबों में जलते देखा है।
वख़त बुरा आये तो कभी दोस्तों को मत ढूँडो,
अँधेरी रात में कभी,साये को साथ देखा है?
हर चमकती सुबह को स्याह रात में ढलते देखा है,
हमने अपने खुदाओ को अक्सर बुत में बदलते देखा है।
हर रात के बाद सुबह आती है,इश्क सच्चा हो तो बुत भी शायद फ़िर खुदा हो जायें.
ReplyDeleteआपका तह-ए-दिल से शुक्रिया!संजय भाई!
Deleteवख़त बुरा आये तो कभी दोस्तों को मत ढूँडो,
ReplyDeleteअँधेरी रात में कभी,साये को साथ चलते देखा है?
सारे शेर मुकम्मल और लाजवाब....
पूनम जी, आपका शुक्रिया, हौसला बढाने ले लिये!
Deleteआज की ब्लॉग बुलेटिन फ़िर से नक्सली हमला... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteइस सम्मान के लिये आपका आभार!
Deleteबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.समय मिले तो कभी पधारे.
ReplyDeleteभूली-बिसरी यादें
"स्वस्थ जीवन: Healthy life"
आपका ब्लॉग यहाँ सम्मिलित है.
"ब्लॉग कलश"
आपका शुक्रिया!
Deleteवख़त बुरा आये तो कभी दोस्तों को मत ढूँडो,
ReplyDeleteअँधेरी रात में कभी,साये को साथ चलते देखा है?..
वाह ... क्या गज़ब बात कही है .. खरी ... लाजवाब शेर है इस गज़ल का ...
दिगम्बर जी,आपको पसंद आया लिखना सफ़ल हुआ! शुक्रिया!
ReplyDeleteअब ऐसी नींद भी खुदा किसी को न अता करे,
ReplyDeleteमैंने अक्सर अपनी रुह को ख्वाबों में जलते देखा है।= वाह
रश्मि जी, आपका शुक्रिया! अलबत्ता आपका "सच में" पर आना काफ़ी समय बाद हुया है!
Deleteबहुत बढिया
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया अनु जी!
DeleteMashAllah...
ReplyDeleteमाही जी! खुशामदीद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteएकता नाहर जी, आपका शुक्रिया।
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