ये सब हैं चाहने वाले!और आप?

Sunday, May 29, 2011

बता तो सही कौन है तू?



घुमड रहा है,
गुबार बन के कहीं,
अगर तू सच है तो,
ज़ुबाँ पे आता क्यों नही?

सच अगर है तो,
तो खुद को साबित कर,
झूंठ है तो,
बिखर जाता क्यों नहीं?

आईना है,तो,
मेरी शक्ल दिखा,
तसवीर है तो,
मुस्कुराता क्यों नहीं?

मेरा दिल है,
तो मेरी धडकन बन,
अश्क है,
तो बह जाता क्यों नहीं?

ख्याल है तो  कोई राग बन,
दर्द है तो फ़िर रुलाता,
क्यों नही?

बन्दा है तो,
कोई उम्मीद मत कर,
खुदा है तो,
नज़र आता क्यों नहीं?


बात तेरे और मेरे बीच की है,
चुप क्यों बैठा है?
बताता क्यों नहीं? 



Friday, May 20, 2011

गुलाब का फूल!(व्यापारी और’गुलाब प्रेमी’ क्षमा करें!)




आपने कभी सोचा है?

गुलाब का फूल कभी भी
जंगल मे नही खिलता,

क्यों भला?



वैसे गुलाब की एक किस्म होती तो है,
जिसे "जंगली" गुलाब कहते है!

पर वो भी कभी जंगल में नही होती,

गुलाब दरअसल बहुत ही,
संवेदनशील होता है!,

मैं वनस्पति विज्ञान का जानकार तो नहीं,
पर गुलाब की फ़ितरत जानता हूँ,

और यकीन मानिये, मैं आप सब से ज्यादा,
जंगलों मे घूमा हूँ!
(वन विभाग वाले माफ़ कर दें तों!)

दरअसल "गुलाब" को पता होता है, कि कौन, 

"कौन" है?


वो फ़र्क कर सकता है,
गुलकँद के व्यापारी ,
गुलाब जल के थोक विक्रेता 


और,

मासूम प्रेमी के बीच,

यदि ऐसा न होता तो,


"..................................
मुझे तोड लेना वन माली,
उस पथ पर देना तुम फ़ेंक,...
.......................................
.......................................
...."  
कभी न लिखी गई होती! 


मेरे एक कमरे वाले 
किराये के घर पर,
कभी आना,
"गुलाब" से मिलवाऊँगा! 





Monday, May 16, 2011

शायद मेरी तनहाई आपको रास न आये!



आप, मेरी तन्हाई पे तरस मत खाना,

मैं तन्हा हूँ नहीं,
मेरे तमाम साथी
दर्द,दुश्मनों की दुआयें,
दोस्तों की बेवाफ़ाई,गम-ओ-रंज़,
मुफ़लिसी,और "सनम की याद"!

बस अभी अभी,
ज़रा देर पहले ही...

बस यूँ ही ज़रा..
निकले हैं,
ताज़ा हवा में सासं लेने के लिये,


अब आप ही बताओं,
ज़रा सोच कर!
"ताज महल" लाख,
खूबसूरत और हवादार हो!
"मकबरा" आखिर "मकबरा" होता है!
और ज़िन्दा "शै" वहाँ कितनी देर बिता,सकते है?


और  वो भी लगातार बिना,
इस अहसास के साथ,
के ज़िन्दगी चलती रहती है
बिना ,उनके अहसास के साथ भी,
जो ज़िन्दा नहीं हैं!!!!

ज़िन्दा रहने के लिये,
ज़रूरी है,"ताज़" की खूबसूरती,
’दर्द’, ’रंज़’,’गम’तो आते जाते हैं!
ये सारे के सारे ज़िन्दा हैं,
और मेरे साथ हैं!
बस अभी अभी ज़रा!!!
यूँ ही ज़रा..............

मैं तन्हा नहीं हूँ!

Saturday, May 7, 2011

मै और मेरी तिश्‍नगी!




मेरी तिश्‍नगी ने मुझको ऐसा सिला दिया है,
बरसात की बूँदों ने ,मेरा घर जला दिया है।

मैने जब भी कभी चाहा, मेरी नींद संवर जाये,
ख्वाबों ने मेरे आके ,मुझको जगा दिया है।

मेरी किस खता के बदले,मुझे ऐसी खुशी मिली है,
मेरी आँख फ़िर से नम है,मेरा दिल भरा भरा है।

मै अकेला यूँ ही अक्सर, तन्हाइयों में खुश था,
तूने  मेरे पास आ के, मुझको फ़ना किया है।

जो खुशी मुझे मिली है, इसे मैं कहाँ सजाऊँ,
कहीं जल न जाये दामन, मेरा दिल डरा डरा है।