न मैं तेरे ख्याल जैसा हूँ,
न मैं मेरे सवाल जैसा हूँ,
न मैं तेरे चश्मे तर में हूँ,
न मैं किसी उदास नज़र में हूँ।
मैं हूँ ही नहीं,मुझे तलाश मत,
गर हूँ कहीं तो असर में हूँ!
असर = गुण/ तासीर
असर= बहुत ही आनन्दित
चटक जाता है बिखर जाता है, शीशे का है ये दिल,
क्या फर्क इस बिचारे को कौन था कातिल।
इस कदर वख्त ने घिसा है हमें ,
चमक तो आई,वज़न जाता रहा।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16-07-2017) को "हिन्दुस्तानियत से जिन्दा है कश्मीरियत" (चर्चा अंक-2668) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार और साधुवाद.
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