मेरे तमाम गुनाह हैं,अब इन्साफ़ करे कौन.
कातिल भी मैं, मरहूम भी मुझे माफ़ करे कौन.
दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
कमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन.
हर बार लड रहा हूं मै खुद अपने आपसे,
जीतूंगा या मिट जाऊंगा, कयास करे कौन.
मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.
गर्दे सफ़र है रुख पे मेरे, रूह को थकान,
नफ़रत की हूं तस्वीर,प्यार बेहिसाब करे कौन.
मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
ReplyDeleteमौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन...वाह
bahut sundar aur gahan kavita...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत खूब भाव..
ReplyDeleteमौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.
ReplyDeleteगर्दे सफ़र है रुख पे मेरे, रूह को थकान,
नफ़रत की हूं तस्वीर,प्यार बेहिसाब करे कौन.
Wah! Kya baat hai!
वाह! क्या बात है
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल!
ReplyDeletenice.
ReplyDeleteमुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
ReplyDeleteमौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन....
Bahut khoob ... Gazab ka sher hai ... Maza AA Gaya ...
बहुत खूब, कुश भाई। एक एक पंक्ति बहुत उम्दा है, सलाम पहुँचे।
ReplyDeleteआप सब पारखी पाठकों को तहे दिल से शुक्रिया। मुझे अच्छा लगा ये जान कर कि मेरी बात आप सब तक पहुँच पाई।
ReplyDeleteहर बार लड रहा हूं मै खुद अपने आपसे,
ReplyDeleteजीतूंगा या मिट जाऊंगा, कयास करे कौन.
बहुत बहुत बढ़िया...
बेहतरीन ब्लॉग....
सुन्दर सृजन , बधाई.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम प्रविष्टि पर आप सादर आमंत्रित हैं.
umda rachna!
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDelete'मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन'
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
ReplyDeleteकमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन.
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ...
हर लाइन सोंचने को मजबूर करती हैं
शुभकामनायें आपको !
दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
ReplyDeleteकमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन
आप कमाल का लिखते हैं ....
शुभकामनायें खूबसूरत लेखनी को !