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Thursday, February 23, 2012

सजा इंसान होने की !




मेरे तमाम गुनाह हैं,अब इन्साफ़ करे कौन.
कातिल भी मैं, मरहूम भी मुझे माफ़ करे कौन.

दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
कमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन.

हर बार लड रहा हूं मै खुद अपने आपसे, 
जीतूंगा या मिट जाऊंगा, कयास करे कौन.      

मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.

गर्दे सफ़र है रुख पे मेरे, रूह को थकान,
नफ़रत की हूं तस्वीर,प्यार बेहिसाब करे कौन.



19 comments:

  1. मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
    मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन...वाह

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  2. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  3. मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.

    गर्दे सफ़र है रुख पे मेरे, रूह को थकान,
    नफ़रत की हूं तस्वीर,प्यार बेहिसाब करे कौन.
    Wah! Kya baat hai!

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  4. मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
    मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन....

    Bahut khoob ... Gazab ka sher hai ... Maza AA Gaya ...

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  5. बहुत खूब, कुश भाई। एक एक पंक्ति बहुत उम्दा है, सलाम पहुँचे।

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  6. आप सब पारखी पाठकों को तहे दिल से शुक्रिया। मुझे अच्छा लगा ये जान कर कि मेरी बात आप सब तक पहुँच पाई।

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  7. हर बार लड रहा हूं मै खुद अपने आपसे,
    जीतूंगा या मिट जाऊंगा, कयास करे कौन.

    बहुत बहुत बढ़िया...
    बेहतरीन ब्लॉग....

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  8. सुन्दर सृजन , बधाई.

    मेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम प्रविष्टि पर आप सादर आमंत्रित हैं.

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  9. 'मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन'
    वाह!!!

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  10. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  11. दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
    कमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन.

    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ...
    हर लाइन सोंचने को मजबूर करती हैं
    शुभकामनायें आपको !

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  12. दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
    कमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन

    आप कमाल का लिखते हैं ....
    शुभकामनायें खूबसूरत लेखनी को !

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