पर अज़ीब है न?
जो बुरा है,
कितना लज़ीज़ है न?
गुनाह कर के भी वो सुकून से है,
अपना अपना ज़मीर है न?
मैं तुझीसे मोहब्बत करता हूं
आखिर मेरा भी रकीब है न?
कैसे उठाऊं मै नाज़ तेरा,
कांधे पर सलीब है न?
उसका दुश्मन कोई नहीं है यहां
वो सच मे कितना बदनसीब है न?
सोना चांदी बटोरता रहता है,
बेचारा कितना गरीब है न?
दर्द पास आयेगा कैसे,
तू तो मेरे करीब है न?
बहुत सटीक बात कही है...
ReplyDeletebahut khub...
ReplyDeleteachhi rachna....
क्या बात है ! दिल को छुं गई ... एक एक पंक्ति जैसे नश्तर है ... जैसे आग है ...
ReplyDeleteसोना चांदी बटोरता रहता है,
बेचारा कितना गरीब है न?
वाह ! अलफ़ाज़ नहीं है मेरे पास तारीफ़ के लिए ...
bahut khoob!!!
ReplyDeletehttp://liberalflorence.blogspot.com/
http://sparkledaroma.blogspot.com/
मंगलवार 29 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
मैं चिटठा जगत की दुनिया में नया हूँ. मेरे द्वारा भी एक छोटा सा प्रयास किया गया है. मेरी रचनाओ पर भी आप की समालोचनात्मक टिप्पणिया चाहूँगा. एवं यह भी जानना चाहूँगा की किस प्रकार मैं भी अपने चिट्ठे को लोगो तक पंहुचा सकता हूँ. आपकी सभी की मदद एवं टिप्पणिओं की आशा में आपका अभिनव पाण्डेय
ReplyDeleteयह रहा मेरा चिटठा:-
सुनहरीयादें
bahot achcha laga.
ReplyDelete"कविता" पर आप सब:
ReplyDeleteअजय कुमार said...
अच्छी गजल ,पसंद आई ।
July 3, 2010 2:31 AM
Amitraghat said...
"बेहतरीन...अंत तो कमाल का था..."
July 3, 2010 2:38 AM
shama said...
Wah! Harek sher gazab hai...harek lafz apni jagah gadha hua hai!
July 3, 2010 2:48 AM
सन्ध्या आर्य said...
amazing ............
July 3, 2010 3:11 AM
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
खूबसूरत रचना
July 3, 2010 3:37 AM
सोना चांदी बटोरता रहता है,
ReplyDeleteबेचारा कितना गरीब है न?
दर्द पास आयेगा कैसे,
तू तो मेरे करीब है न?
saral or sundar yakinan kabil-e daad kubool karen
Gr8, dil kush kits ji
ReplyDeleteThanks Dear Anil. Iam happy you read and liked it.
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