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Thursday, January 22, 2009

"दादी की सुनाई हुई एक और कथा".


जो दादी ने सुनाई थी उसमें कुछ नये टर्म (contemprory) एड कर के सुनाता हूँ!

एक थे सिरक़टु (Jackal) और एक थी उनकी सिर्कॅटी (She Jackal). दोनो जंगल के किनारे पर एक मांद में जो शहर के एक दम नज़दीक़ था, रहते थे. सिर्कॅटी थोड़ी fashion conscious थी,और सिरक़टु को हमेशा इस बात, के लिए  कोसती रहती थी के वो ना तो खुद फैशन का ध्यान रखते हैं, और ना ही उसे रखने देते हैं.
सिरक़टु काफ़ी परेशान रहते थे पर क्या करते,बीवी जो ठहरी , एक दिन अड़ गयी नये  डेज़ाइन के बॅंगल्स ही चाहिए, सिरक़टु ने बहुत समझाया,घर की फिनान्सियल कंडीशन और मंहगाई का हवाला दिया और यह भी कहा कि के ये सब तो औरतों के चोचले हैं 'अच्छी सियारनी ' ऐसी ज़िद नही करतीं,पर वो कहाँ सुनने वाली थी.
सियारनी ने सिरक़टु का जीना मोहाल कर दिया,आते जाते बस........ बॅंगल्स.... ................ बॅंगल्स....नये बॅंगल्स!!!!!!!

सिरक़टु ने सोचा ये ना मानेगी चलो इसे सबक़ सिखाया जाए. शाम होने से पहले बोले,"डार्लिंग इतने दिन हो गये तुम बॅंगल्स,बॅंगल्स करती हो आज तुम्हारी  डिमांड पूरी कर ही देता हूँ. Be ready in the evening I will fetch the ,'Manihaar'(बॅंगल्स वाला) फ्रॉम the सिटी, अपने मन की चूड़ियाँ पहन लेना.


In the evening,the Jackal with a revengefull mind went to the city edge and howled in his typical voice,which attracted all the stray dogs of the city to chase the howling Jackal.

कुत्तों को अपने पीछे दौड़ाते हुए सिरक़टु पहुँच गये अपनी 'मांद' के सामने. अंदर घुस कर श्रीमती जी से बोले,'जाओ जा कर जो जो,चूड़ियाँ लेनी हैं ले लो. And for God' sake donot start bargaining with these Guys! I just hate this middle class attitude of yours!'

बाहर खड़े कुत्ते तो सिरक़टु के गायब हो जाने के रहस्य को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे और मांद का दरवाजा सूंघ कर इंतेज़ार कर रहे थे. जैसे ही श्रीमती सिर्कॅटी जी बाहर आईं ,वे सब उन पर टूट पड़े और सिर्कॅटी जी लगी चिल्लाने . उसकी चीखें और ज़ोर से आने पर अंदर से सिरक़टु जी जो अब सारी situation का मज़ा ले रहे थे बोले, "अरी भागवान, क्यों पैसे के लिए argue कर रही हो.I told you to hold back your middle class attitude,and be modern to not to bargain."

थोड़ी देर बाद जब कुत्तों का हौसला जवाब दे गया और जब उन्हे शहर में लगे बिजली के खम्भे याद आए, जो जंगल में नही थे,तो वो सिर्कॅटी को उस के हाल पे छोड़ कर वापस भाग लिए.

सिर्कॅटी(She जैकाल)को उस का सबक़ मिल गया था ,और (He) जैकाल को उसका peace of mind and life!!!!!

They possibly lived happily, there after!!!!!!!

और इस situation पर यह funny शेर बिल्कुल फिट बैठता है के:  

"माँग वो माँग के जिस माँग ने दिल माँग लिया,
और टाँग वो टाँग के जिस टाँग ने दिल टाँग लिया"
पता नही किस ने लिखा है ,पर लिखा बहुत खूब है.
And for those who want little more 'Masala'(musical) on "She-He"नोंक-झोंक of 70's please clik below here,switch on your speakars/put on headphones and enjoy! 



Wednesday, January 14, 2009

"सूखे सर्राटे"!




एक कहानी बहुत पुरानी!


मेरी दादी ने तमाम कहानियाँ मुझे सुनाई थी उनमें से कुछ तो पन्चतन्त्र के मानदंडो पर खरी उतरती हैं कुछ ऐसी हैं जो कभी भी किसी मानदंड पर खरी नही उतरेंगी पर उनका ज्ञान किसी भी साहित्यक कथानक़ को चुनौती दे सक़ता है.


ऐसी ही एक कथा आप सब के साथ बाँटना चाहता हूँ.


(मेरा दिल तो करता है के  ब्रज भाषा जो मेरी दादी की बोली थी, में आप सबको यह सुनाऊं पर मैं जानता हूँ के,शायद आप सब को उतना आनंद ना आए, अत: हिन्दुस्तानी से ही काम चलाता हूँ.)




" एक बार गिलहरी और गिरगिट के बीच दोस्ती हो गयी ,गिलहरी ने गिरगिट से कहा कभी मेरे घर आना.


गिरगिट ने पूछा कहाँ आना है,गिलहरी बोली वो जो नदी के किनारे हरा भरा से पेड़ दिख रहा है,बस उसीके एक 'खोखर' में मैने अपना आशियाना बनाया है, वहीं चले आना.वैसे सबेरे -सबेरे मैं घर को सजाती हूँ,दिन में खाना पानी जुटाती हूँ, इसलिए शाम को आना बेहतर होगा. 


अगले दिन गिरगिट गिलहरी के घर पहुँच गया. गिलहरी का घर सुंदर तो था ही अपितु उसकी सजावट और हरे भरे वातावरण से गिलहरी के टेस्ट का भी भली भाँति पता चलता था.खैर ,गिरगिट जी का पहले तो नदी के ठंडे पानी से स्वागत हुया ,हरी घास, नर्म पत्तियाँ,वो सर्दियों का बचाया हुया अखरोट का टुक़ड़ा भी और जो कुछ गिलहरी को लगा के गिरगिट की पसंद का हो सक़ता है पेश किया गया.दुनियाँ जहाँ की बातें हूई और फिर जैसा की दस्तूर है,,विदा लेते समय गिरगिट ने भी गिलहरी को अपने यहाँ आने का निमंत्रण देते हुए विदा ली.


जाते जाते गिलहरी ने पूछा, ' गिरगिट जी आप रहते कहाँ हो?' गिरगिट ने जवाब दिया,' वो जहाँ नदी का किनारा ख़तम होता है और 'ऊसर' के किनारे सूखा हुया 'खजूर का पुराना पेड़ है बस वहीं आ जाना.'




कई दिन बीत जाने पर एक दिन गिलहरी ने सोचा सामाजिक संबंधों के नाते मेरा गिरगिट के यहाँ जाना ही उचित है,और वो सही समय देख कर उस के घर जा पहुँची पहले तो रास्ते की गर्म रेत से उसके नाज़ुक़ पाँव ही जल गये ,और उपर से दिक़्क़त ये के जब घर के पास पहुँची तो इतने ऊपर चढ़ने में नानी याद आ गई .


खैर, जैसे तैसे गिरगिट जी से मुलाक़ात हुई ,काफ़ी समय गुजर गया पर 'आवोभगत' का कोई नामोनिशान नही.पर गिलहरी तो सामाजिक़ मान्यताओं और सभ्यता के संस्कारों से बँधी हुई थी अत: धीरे से बोली, "गिरगिट जी आप अपना समय कैसे गुज़ारते हैं?"


गिरगिट तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रहा था, लपक कर बोला, " अरे बड़े मज़े का काम है आईंये आप को अभी दिखता हूँ." इतना कह कर गिरगिट झट से लंबे खजूर के तने पर सरपट दौड़ता हुया नीचे से उपर और उपर से नीचे "सर्राटे" भर कर दौड़ने लगा . और तेज़ आवाज़ लगाकर गिलहरी से बोला आओ मेरी दोस्त थोड़ा सा तुम भी 'एंजाय' करो ना.


गिलहरी समझ चुकी थी यहाँ तो सिर्फ़ "सूखे सर्राटे " ही मिलेंगे.  
उसने तुरंत अपने दोस्त से विदा ली और मन ही मन कहा,  
"कितना अद्भुत सैर सपाटा,मुझे मिला सूखा सर्राटा" 





अब इस कहनी से मिलने वाले ज्ञान को में आप सब पाठकों की मेधा पर इस प्रॉमिस व वचन के साथ छोड़ देता हूँ , कि यदि किसी प्रबुध पाठक ने मुझ से वो ज्ञान जो मैने इस कथा से हासिल किया है, माँगा और मैने देने में ज़रा भी आनाकानी की तो मेरे सिर के उतने ही टुकड़े होंगे जितने 'वेताल' का जवाव ना देने पर ,'राजन विक्रमादित्य' के सर के हो सक़ते थे.