ये सब हैं चाहने वाले!और आप?

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Wednesday, June 30, 2010

"अभी, कुछ बाकी है!"

आज शाम प्राइम टाइम पर हिन्दी खबरो का एक मशहूर खबरी चैनल जो सबसे तेज़ तो नहीं है,पर TRP में शायद आगे रहता हो, एक सनसनी खेज खबर दिखा रहा था। शायद! क्यों कि मैं,खुद कभी ये TRP और उसका असली खेल समझ नहीं पाया,क्यों कि शायद मेरी खुद की TRP कभी भी रसातल से धरातल पर नहीं पहुंच पाई।खैर!,मेरी TRP बाद में,उस खबर पर आते हैं।


खबर के मुताबिक नागपुर में, एक ७४ साल के बुज़ुर्ग ने अपने सिर में 9 mm की रिवाल्वर से तीन गोलियां ठोक डालीं। चैनल की खबर के मुताबिक यह बुज़ुर्ग बिमारीयों की वजह से निराश था, और शायद इसी लिये उसने ऐसा किया।अब बुज़ुर्ग तो ICU में है और शल्यचिकित्सा के बाद सकुशल बाकी की ’सज़ा-ए-ज़िन्दगी’ काटने की तैयारी कर रहा है। यह अपने आप में शायद काफ़ी आश्चर्यजनक घटना है,परंतु मेरे ज़ेहन में एक बचपन में सुनी कहानी कौन्ध गई।अब ये कहानी कितनी "सच" या "झूंठ" है, और इसका उपरोक्त खबर से कितना लेना देना है, ये मैं अपने विवेक को बिना कष्ट दिये सुधी पाठकों के निर्णय पर छोड देता हूं, और कथा कहता हूं।




कई युगों पुरानी बात है, एक साधु और उसका शिष्य,जो जीवन दर्शन को ज्योतिष और देशाटन के माध्यम से समझने में जुटे हुये थे, गांव-गांव,नगर-नगर घूम कर अपना जीवन व्यतीत करते हुये फ़िरते थे,और जो कुछ मिल जाता उससे अपनी ज़िन्दगी की गुजर बसर करते थे।ये वो समय था जब Education इतनी Formal नहीं थी कि उसके लिये पैसे लगते हों ,बस गुरु के साथ साथ फ़िरो, जीवन जैसा उसका है, जियो और बस gain the knowledge of life!(इतना सिम्पल नहीं था!शायद!) खैर हमें इस सब से क्या! 


एक दिन जब घूमते घूमते दोनों एक मरुस्थल को पार कर रहे थे,चेले का पैर एक मानव खोपडी से टकराया,उसने कौतूहल वश उसे उठा कर अपनी झोली में डाल लिया।रात में जब एक सराय में दोनों ने भोजन आदि करने के बाद आराम करने की मुद्रा पकडी तो शिष्य ने उचित समय जान कर गुरु से कहा,’ गुरू जी!,मस्तक रेखाओं को पढ कर भी मनुष्य का ,वर्तमान ,भविष्य और भूतकाल जाना सकता है, न? गुरु ने कहा हां हो तो सकता है।इस पर उत्साहित हो कर चेले ने लपक कर अपनी झोली से वही मानव खोपडी जो दोपहर उसने उठा कर अपनी झोली में डाल ली थी,निकाल लाया और गुरू जी के चरणों पर रख दी।निवेदन करते हुये बोला गुरू जी आज इस गोपनीय ञान से मुझे अवगत करा ही दो।आपसे निवेदन है कि,इस मानव कपाल की रेखाओं को पढकर इसका भूत,वर्तमान और भविष्य बांचों और मुझे भी सिखाओ।


(I am sure चेले ने उन दिनों प्रचलित तरीके से यह भी ज़रूर कहा होगा,Pleezzzzee!)


गुरू महान था और अपने शिष्य का अनुरोध मान कर बोला जरा प्रकाश की व्यवस्था कर।
कुछ देर रेखाओं की गहन भाषा में तल्लीन रहने के बाद, गुरू ने कहा,


"देश चोरी,मरुस्थल मृत्यु,अभी कुछ बाकी है!"


शिष्य ने कहा गुरू जी थोडा प्रकाश डालें।गुरू जी ने समझाते हुये कहा,इस व्यक्ति का भूतकाल कहता है, कि अपने देश(निवास स्थान) में चोरी करने के बाद वहां से भागते भागते, मरुस्थल में जा कर मृत्यु को प्राप्त होगा,जो इसका वर्तमान है, और इसका भविष्य कहता है कि इतने पर भी इसकी कर्म गति पूर्ण नहीं होगी,भविष्य में कुछ और भी घटित होगा।


शिष्य जो जाहिर है अभी उतना knowledgeable नहीं था बोला,’हे प्रभू, मृत्यु के बाद भी शरीर के साथ कुछ और क्या बाकी हो सकता है?’इस पर गुरू बोले न तो तू इतना पात्र है, और न मैं इतना ञानी कि तेरी इस शंका का  मैं समाधान कर सकूं अतः तेरी और इस कपाल की भालाई इसी में है, कि तू इस को इसके हाल पर छोड, और गुरू सेवा में लीन हो कर, जरा मेरे चरणों का चम्पन कर! 


शिष्य तुरंत आदेशानुसार गुरू जी की सेवा में जुट गया।कुछ ही पलों में गुरू जी निद्रा देवि की शरण में लीन हो गये।
पर चेला तो, चेला था पूरी रात नींद जैसे आंखों को छूने से भी मना कर रही हो! जागता रहा और सोचता रहा, अब क्या बाकी है, इस निर्जीव मनाव कपाल के लिये?क्या मृत्यु के बाद भी शरीर की कोई गति सम्भव है?क्या गुरू जी का ग्यान सच्चा है?क्या जो उन्होने कहा सच होगा?


इसी उधेड बुन में पूरी रात कट गई, पर न कोई उत्तर मिला और न मन को चैन, पर करता क्या बेचारा!प्रातः होते ही गुरु के आदेशानुसार सभी दैनिक कार्यों से निवृत हो कर ,जब चलने लगे तो गुरु जी की अनुमति लेकर कहा गुरु जी आप अग्रसर हों, मैं तुरंत ही आप का अनुसरण करता हूं। गुरू जी जो दयालु और अनन्य प्रेम करने वाले थे, शिष्य का कहा मान कर चल पडे। थोडी दूर ही पहुंच पाये थे कि हांफ़ता और भागता हुया चेला भी पीछे से आ पहूंचा और दोनों एक नये दिन और नई नगरी को चल पडे। 


दिन ढलने पर जब पुनः रात्रि विश्राम की बारी आई तो चेले ने गुरू जी की चरण सेवा प्रारंभ करते ही पूछा,
’गुरू जी क्या आपने कल जो कहा वो सत्य होगा?मेरा तात्पर्य उस मानव कपाल के बारे मैं है?
इस पर गुरु जी बोले वत्स तू यह शंका किस पर कर रहा है,मेरे कथन की सत्यता पर या ज्योतिष के ञान पर?
शिष्य बोला, प्रभु माफ़ करें इस समय तो दोनो पर ही शंका हो रही है। आपको याद होगा आज सुबह चलने से पहले मैं आपकी अनुमति लेकर कुछ समय बाद आपके साथ आया था!उस दौरान मैने उस कपाल को सराय की ओखली में डाल कर मूसल से कूट कूट कर चूर्ण बना दिया, और चूर्ण को नदी मे प्रवाहित भी कर दिया! अब बतायें गुरु जी इस स्थिति में अब क्या बाकी है, उस कपाल का? गुरू ने मंद मुस्कुराते हुये कहा ,जो बाकी था तूने माध्यम बन कर पूरा कर तो दिया। शायद अब कुछ बाकी न हो!


यह तो रही कहानी की बात! मेरी शंका यह है,कि मृत्यु के बाद की गति की बात बेमानी है! असल मुद्दा है,कि जीवन की सज़ा पाये हुये लोगों कि गति का क्या मार्ग है, आइये इस प्रयास में लगें। और हां उन बुजुर्ग के साथ मेरी संवेदनाये जिन्हे शायद जीवन की जेल से कुछ दिन की पैरोल तो मिल जाये (कोमा में) पर उनकी रिहाई तो मेडिकल साईंस और किस्मत ने मिल कर रोक ही दी,अभी और क्या बाकी है, इस विषय पर आजकल का ज्योतिष शायद उतना विकसित नहीं रहा!

Wednesday, November 25, 2009

आम ऒ खास का सच!

मेरा ये विश्वास के मैं एक आम आदमी हूं,
अब गहरे तक घर कर गया है,
ऐसा नहीं के पहले मैं ये नहीं जानता था,

पर जब तब खास बनने की फ़िराक में,
या यूं कहिये सनक में रह्ता था,

यह  कोई आर्कमिडीज़ का सिधांत नही है,
कि पानी के टब में बैठे और मिल गया!

मैने सतत प्रयास से ये जाना है कि,
किसी आदमी के लिये थोडा थोडा सा,
"आम आदमी" बने रहना,
नितांत ज़रूरी है!

क्यों कि खास बनने की अभिलाषा और प्रयास में,
’आदमी ’ का ’आदमी’ रह जाना भी
कभी कभी मुश्किल हो जाता है,
आप नहीं मानते?

तो ज़रा सोच कर बतायें!
’कसाब’,’कोडा’,’अम्बानी’,’ओसामा’,..........
’हिटलर’ .......... .........  ........
..... ......
आदि आदि,में कुछ समान न भी हो

तो भी,

ये आम आदमी तो नहीं ही कहलायेंगे,
आप चाहे इन्हे खास कहें न कहें!

पर!

ये सभी, कुछ न कुछ गवां ज़रुर चुके हैं ,

कोई मानवता,
कोई सामाजिकता,
कोई प्रेम,
कोई सरलता,
कोई कोई तो पूरी की पूरी इंसानियत!



और ये भटकाव शुरू होता है,
कुछ खास कर गुज़रने के "अनियन्त्रित" प्रयास से,
और ऐसे प्रयास कब नियन्त्रण के बाहर
हो जाते हैं पता नहीं चलता!

इनमें से कुछ की achivement लिस्ट भी
खासी लम्बी या impressive हो सकती है,
पर चश्मा ज़रा इन्सानियत का लगा कर देखिये तो सही,
मेरी बात में त्तर्क नज़र आयेगा!


Monday, March 9, 2009

जीवन के सत्य !पूरी कहानी एक साथ !




हालांकि मैने ऐसी कोई कसम नही खाई थी कि मै ,दादी के द्वारा सुनाई हुई कहानी के अलावा कोई अन्य कथा अपने ब्लॉग पर नही लिखूंगा। फिर भी मुझे विश्वास है ,कि यह कथा भी मेरी दादी को ज़रूर पता थी,पर उन्होने मुझे इस लिये नही सुनाई होगी क्यों कि,तब मै एक बच्चा रहा हुंगा,और वो यह नही समझती होगी कि एक न एक दिन मै इस कहानी के मर्म को समझ ही जाउँगा। अत:आप सब के साथ बाँट रहा हूँ ।

यह कथा मुझे एक 'ई-मेल' के माध्यम से मिली थी।कथा के पात्र भी आंग्ल भाषी और अंगरेज़ी नामो वाले थे।मैने सिर्फ नामों को बदल दिया है।आप में से जिन को मूल कथा में ज्यादा दिलचस्पी हो,कृपया अपना अनुरोध कमेंट बॉक्स में लिख दें (ई-मेल पते के साथ )।मै वेताल की तरह वादा करता हूँ के यदि मै 'मूल कथा ' न सैंङ(send) करूँ तो ,"मेरे सिर के................!"

अब कथा सुनिये :

बहुत पुरानी बात है,एक बहुत प्रतापी राजा था।उसके पड़ोसी देश के राजा ने उस पर आक्रमण कर ,उसे युद्ध में उसे पराजित कर बंदी बना लिया।और कहा कि,'हे राजन,अपितु आप मृत्यु दंड के अधिकारी हैं ,परन्तु आप के प्रताप से प्रभावित हो कर मै आप को एक अवसर देना चाहता हूँ। यदि आप मेरे प्रश्न का उत्तर सही-सही दे सकें, तो मै आप का राज्य और सम्मान दोनो वापस कर दूँगा ।'

इतना कह कर विजयी राजा ने भोज पत्र पर लिखा हुआ "वो प्रश्न" एक रेशम के वस्त्र में लपेट कर उस राजा को दे दिया ,और कहा ,'क्योंकि मै यह जानता हूँ कि ,मेरे प्रश्न का उत्तर इतना सरल नही है ,अत: मै आप को एक वर्ष का समय देता हूँ।यदि एक वर्ष के भीतर आप मेरे प्रश्न का उत्तर ले कर मेरे पास आ गये और मै उस से सन्तुष्ट हो गया तो आप के पूरा राज्य ससम्मान आपको वापस कर दूँगा।अन्यथा आप अपनी मृत्यु को अवश्य ही प्राप्त हो जायेंगे ।

...........
क्रमश:


पराजित राजा ने सोचा कि उसे अपना जीवन तथा अपना राज्य बचाने का यह अवसर तो मिला है, परन्तु क्यावोप्रश्नऐसा है, कि ,उसका उत्तर दिया जा सके। ऐसा विचार आते ही उसने रेशम में लिपटे हुए उस भोजपत्र कोखोला,भोज पत्र पर लिखे "उस प्रश्न " को पढते ही राजा के माथे पर पसीने कि बूंदे उभर आयी ।यह एक ऐसा प्रश्न थाजिसका उत्तर शायद आज तक कोई दे पाया था, ,तथा इस बात की संभावनायें भी क्षींण थी,के उसके राज्य में ऐसा कोई है जो "इस प्रश्न "का उत्तर जानता हो।

परन्तु उसके पास दूसरा रास्ता भी नही थाअतभारी मन से राज्य की ओर चल दिया। अपने राज्य में पहुँचकरसभी ज्ञानियों ,रानियों ,राजकुमारियों तथा अपने मित्रों से सारी स्थिति की चर्चा की ।कोई भी यह दावे से नहीकह सका कि ,"उस प्रश्न का  ऐसा उत्तर वो दे सकता है ,जो विजयी राजा को सन्तुष्ट कर सके| जिस से राज्यतथा राजा का जीवन बच सके
पराजित राजा का अंतरंग मित्र एवं उस का सब से विद्वान सभासद इस सारी घटनाक्रम से न सिर्फ चिन्तिन्त था , बल्कि लगातार समस्या के समाधान के बारे में मनन तथा चिन्तन भी कर रहा था।उसने सोचा जब हमारे पास एक वर्ष का समय है तो क्यों न इस का आनन्द उठाऐं और लगातार प्रयास करते रहें कि "उस प्रश्न" का समोचित उत्तर मिल जाए ।
ऐसा ही विचार कर के उसने राजा से कहा ," हे! राजन , जीवन- मृत्यु ,मान -अपमान ,हानि -लाभ ,यश-अपयश ये तमाम सामाजिक अवस्थायें " प्रारब्ध" के हाथ में हैं ।अत :आप चिन्तन छोड कर राज्य का हित करे और राजा की भाँति जीवन के आनन्द को भोगें ।उचित समय आने पर हम इस विपदा से निपट लेगे ।

............
क्रमश:



समय गुजरते देर नही लगती ,एक दिन राजा के मित्र ने महसूस किया कि अब तो एक सप्ताह से भी कम समय रह गया है कि जब उसके मित्र को विजयी राजा के पास जाना होगा और"उस प्रश्न "का उत्तर देना होगा ।पर "उस प्रश्न" का उत्तर था कहाँ?

राजा का मित्र जान गया कि अब देर करना घातक होगा । बहुत विचार के बाद उसने राजा से कहा ,"राजन हमारे राज्य में रहने वाली वो 'चुड़ैल' जो जंगल के बाहर गुफा में रहती है और हर समस्या के समाधान जानने का दावा करती है....।"

राजा वाक्य पूरा होने से पहले ही बोला,"तो तुरंत उस को बुला भेजो"।

मित्र ने उत्तर दिया ,"परन्तु वह छोटी से छोटी समस्या के लिये भी बडे से बडी कीमत वसूलने के लिये मशहूर है।"

राजा बोला ,"क्या राज्य और राजा के जीवन से बढ़ कर भी कोई मूल्य है जो वो मांग सकती है"?"मित्र के पास इसका कोई जवाब न था ,उस 'चुड़ैल' को बुलवाया गया ।

उस 'चुड़ैल' के बारे में भी सुन लें क्योकि 'सभ्य समाज' के लोग इन बातों पर
ज़रा कम ही चर्चा करते हैं ।वो एक दाँत वाली बूढ़ी,कुबढ़ी ,औरत थी।(नही माफ करें ,"चुड़ैल"थी) जब बोलती थी तो न सिर्फ उसकी आवाज़ कर्कश लगती थी,बल्कि उसकी देह से आने वाली दुर्गन्ध को झेल पाना,बडे-बडे बलशाली योद्धा को भी मुश्किल लगता था ।


खैर हमें उसके 'रूप वर्णन' से क्या लेना ।उसको वो भोजपत्र ला कर दिया गया जिसे पढ़ कर उसके होठों पर कुटिल मुस्कान आयी और वो बोली, "उत्तर तो है !और यह भी निश्चित है कि इस उत्तर से विजयी राजा सन्तुष्ट भी हो जायेगा।परन्तु मेरी कीमत,जो में इस उत्तर के बदले में लूँगी ,उस पर पहले चर्चा हो जाए तो ठीक है।"

राजा के मित्र ने आश्वासन देने वाली नज़र से राजा की और देखा और 'चुड़ैल' से बोला,'तुम्हारी मुँह मांगी कीमत तुमको मिल जायेगी,परन्तु हमारे राजन के वापस आने के बाद ।'

अब बारी 'चुड़ैल' की थी, उसने कहा,'मै ,समय के बारे में नही 'कीमत' के बारे मे बात करना चाहती हूँ ।'

राजा का मित्र बोला ,'क्या कहना है निसंकोच कहो?'

चुड़ैल बोली ,'हे! राजन के मित्र ,यदि राजा अपने प्राण तथा राज्य ,विजयी राजा से वापस ले कर आ गये,तो आप को मुझसे विवाह कर जीवन पर्यन्त मेरे साथ रहना होगा ।'

राजा समेत सभी उपस्थित लोगो के मुख मलीन पड़ गये । परन्तु राजा का मित्र बोला ,'मेरे राष्ट्र और मित्र के जीवन बचाने हेतु मैं ,ऐसा ही करूँगा,परन्तु हमारा विवाह राजन के सकुशल लौट आने पर ही होगा!'

राजा ने अपने मित्र को रोकने की कोशिश की पर वो न माना ,मानो देश तथा मित्र के प्रति अपना अहसान चुकाना चाहता हो।

'चुड़ैल' ने "उस प्रश्न" का उत्तर एक भोजपत्र पर लिखा और राजा को दे दिया । राजा विजयी राजा के पास गया और उसको सन्तुष्ट कर वापस आ गया । राज्य मे पर्व मनाया गया।
जैसा कि तय पाया गया था 'चुड़ैल' का विवाह राजा के मित्र से धूम धाम से किया गया।राजा ने अपने मित्र को धन्यवाद तो दिया ही साथ ही अपनी संवेदनाएँ भी दी,क्योंकि वो नही जानता था के उसका मित्र अब कैसे जीवन निर्वाह करेगा ,उस कुरूप ,कर्कश और दुष्ट 'औरत' (माफ करें! "चुड़ैल") के साथ

खैर ,राजा का मित्र अपने घर पहुँचा और शयन कक्ष में जा कर अपनी नवविवाहिता को देख कर आश्चर्य चकित रह गया क्योंकि वहां कोई चुड़ैल नही अपितु एक सुंदर नव युवती रेशम के परिधानो में उसका इंतजार कर रही थी ।



राजा के मित्र ने उससे पूछा ,'यह सब क्या है? और कैसे हुआ? वो 'चुड़ैल' (माफ करे !सुंदर स्त्री !) बोली ,'प्रिय ,क्योंकि आपने मित्र और राष्ट्र के प्रति प्रेम की मिसाल रख कर यह साबित कर दिया है के आप एक महान पुरूष हैं अत :,मैं ने अपने जादू से यह रूप हासिल किया है ।यह आप के प्रेम को समर्पित है। ' आप धन्य हैं!

यहाँ पर कथा समाप्त की जा सकती थी ,पर "उस प्रश्न " और उत्तर का क्या हुआ ? अत: कथा यहाँ समाप्त नही हो सकती!आगे सुने:


और फिर वह सुंदर महिला (अब छोडिऐ, बार बार क्या माफी मांगना )बोली ,"प्रिय ,क्योंकि यह रूप जादूई है इसलिये सिर्फ बारह घंटे तक ही इसे रखा जा सकता है ।आप की जैसी मर्जी हो बतायें ? आप यह रूप दिन के समय देखना चाहेंगे या रात को ?"

पुरुष पाठक सोचें (मन को टटोल कर! )के वो यदि राजा के मित्र होते तो क्या माँगते?

और महिला पाठक भी सोचें (चलो बिना मन को टटोले ही सही!)कि यदि उनके पति राजा के मित्र की जगह होते तो क्या माँगते?

राजा के मित्र ने सोचा ,और मन ही मन कहा ,'यदि दिन में इसका सुंदर रूप रहा तो सभी मुझसे ईर्षा तो करेंगे पर,मेरा अपना जीवन नरक बन कर रह जायेगा। और यदि रात्रि में यह रूप रहा तो मैं सामाजिक तानो का सामना करते करते नरक के समान सामाजिक जीवन बिताता रहूंगा । मैं क्या करूँ ?यह मेरा "प्रारब्ध" है अत: इसके ऊपर ही छोड देता हूँ !

ऐसा सोच कर बोला ,'जैसा आप को भाये देवी वैसा ही करो!"

इतना सुन कर वह 'चुड़ैल'(अब तो माफी मांग कर ठीक ही करूँगा !माफ करें "सुंदर स्त्री") बोली ,'आप से ऐसी ही उम्मीद थी!आप को जान कर खुशी होगी कि आप के बलिदान से मेरी'जादूई शक्ति' इतनी बलवती हो गयी है कि अब मैं सारे समय इसी रूप में रह सकती हूँ "

इसके बाद कई सालों तक वह जोड़ा आनन्द के साथ जीवन बिताता रहा और उन्होने कई प्रेरणा दायक कहानियों के कथानक दिये ।
पर "वो प्रश्न" और उसका उत्तर क्या था ?
प्रश्न मुझे पता है ।और आप भी सुने /पढ़ें :

"आखिर औरतें चाहती क्या है?"

जहाँ तक उत्तर का सवाल है!

क्योंकि राजा तथा उसके मित्र ने एक बडी कीमत चुका कर उसे प्राप्त किया था ,उसे एक "राष्ट्रीय गोपनीय सूचना" का स्तर दे कर खजाने की तिजोरी में रखवा दिया था।अत: मै भी नही जानता।
हाँ परन्तु जिस ई-मेल का मैने प्रथम भाग में ज़िक्र किया था उसमे इस पूरी कथा से मिलने वाली दो ज्ञान की बातों का जिक्र है जो आप सब के साथ बाँट लेना ज़रूरी है :

#"हर महिला के अन्दर ,चाहे वो कितनी भी सुंदर या असुंदर हो एक "चुड़ैल" ज़रूर छुपी होती है!"
#"In married life it is either "Her way" or there is "No way "!

अब मै या आप इस से इत्तेफाक रखते हैं या नही, कोई फ़र्क नही पड़ता क्योंकि यह तो ई-मेल भेजने वाले सज्जन के विचार है।और में तो, उनका शुक्रगुजार हूँ ,मुझे इतना सुंदर कथानक देने के लिये!