अभी कुछ देर पहले.
रात के पिछ्ले प्रहर
चाँद उतर आया था,
रात के पिछ्ले प्रहर
चाँद उतर आया था,
मेरे सूने दलान में,
यूँ ही,
मैंने तुम्हारा नाम लेकर
पुकार था,
उसको ,
अच्छा लगा! उसने कहा,
इस नये नाम से पुकारा जाना,
तुम्हें कोई एतराज तो नहीं,
गर मैं रोज़ उस से बातें कर लिया करूँ?
और हाँ उसे पुकारूं तुम्हारे नाम से,
उसे अच्छा लगा था न!
तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा न?
गर चाँद को मैं पुकारूं तुम्हारे नाम से!
यूँ ही,
मैंने तुम्हारा नाम लेकर
पुकार था,
उसको ,
अच्छा लगा! उसने कहा,
इस नये नाम से पुकारा जाना,
तुम्हें कोई एतराज तो नहीं,
गर मैं रोज़ उस से बातें कर लिया करूँ?
और हाँ उसे पुकारूं तुम्हारे नाम से,
उसे अच्छा लगा था न!
तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा न?
गर चाँद को मैं पुकारूं तुम्हारे नाम से!
बेहद खूबसूरत..............
ReplyDeleteये दीवानगी किसे अच्छी नहीं लगेगी.......
अनु
शुक्रिया!
Deleteचाँद खुश तो चांदनी भी खुश ....
ReplyDeleteशुक्रिया!
Deleteबढिया रचना
ReplyDeleteआपकी इनायत है!
DeleteBeautiful
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शुक्रिया!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteईद-उल-जुहा के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ|
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteशुक्रिया! आप सबका!
ReplyDeletebadiya
ReplyDeleteउसे अच्छा लगा था न!
ReplyDeleteतुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा न?
बहुत खूब
आदित्य जी, सदा जी आपका शुक्रिया।
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