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Saturday, October 27, 2012

चाँद और तुम!

अभी कुछ देर पहले.

रात के पिछ्ले प्रहर
चाँद उतर आया था,


मेरे सूने दलान में,

यूँ ही,
मैंने तुम्हारा नाम लेकर 


पुकार था,

उसको ,

अच्छा लगा! उसने कहा,

इस नये नाम से पुकारा जाना,

तुम्हें कोई एतराज तो नहीं,
गर मैं रोज़ उस से बातें कर लिया करूँ?
और हाँ उसे पुकारूं तुम्हारे नाम से,
उसे अच्छा लगा था न!
तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा न?


गर चाँद को मैं पुकारूं तुम्हारे नाम से!

15 comments:

  1. बेहद खूबसूरत..............
    ये दीवानगी किसे अच्छी नहीं लगेगी.......

    अनु

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  2. चाँद खुश तो चांदनी भी खुश ....

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  3. सुन्दर प्रस्तुति!
    ईद-उल-जुहा के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  4. उसे अच्छा लगा था न!
    तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा न?
    बहुत खूब

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  5. आदित्य जी, सदा जी आपका शुक्रिया।

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