कितना मुश्किल है,
किसी भी इंसा के लिये,
चलते चलते,रूक जाना
खुद ब खुद!
थक कर चूर,
कुछ मुसलसल चलने वाले
चाहते थे रूकना!
कभी,छाँव न मिली,
कभी रास न आया थकना।
मेंने कहा,अब रूक भी जाओ,
कोई,इक थोडी देर,
बस यूँ ही ज़रा,
वो बोले,
मगर कैसे?
जैसे,खोल दे कोई,
बंद मुठृठी को, मैंने कहा
वो बोले,घबराकर,
मगर कैसे?
सच में कितना मुश्किल होता है,
जिन्दगियों का आसां होना।
रूके कोई क्यूं,
मौत के आगोश,से,
पहले भला!
चलते रहने का,क्यूँ
यूँ हीं चले ये सिलसिला?
किसी भी इंसा के लिये,
चलते चलते,रूक जाना
खुद ब खुद!
थक कर चूर,
कुछ मुसलसल चलने वाले
चाहते थे रूकना!
कभी,छाँव न मिली,
कभी रास न आया थकना।
मेंने कहा,अब रूक भी जाओ,
कोई,इक थोडी देर,
बस यूँ ही ज़रा,
वो बोले,
मगर कैसे?
जैसे,खोल दे कोई,
बंद मुठृठी को, मैंने कहा
वो बोले,घबराकर,
मगर कैसे?
सच में कितना मुश्किल होता है,
जिन्दगियों का आसां होना।
रूके कोई क्यूं,
मौत के आगोश,से,
पहले भला!
चलते रहने का,क्यूँ
यूँ हीं चले ये सिलसिला?