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Friday, April 28, 2017

बात बात में वो बात भूल गया
जो बात बताने के लिये
बात शुरू की थी,
क्या पता था,
बातों बातों मे वो बात भी आ जायेगी,
जिसे बताने से,
बात बिगड आयेगी ,
मगर,
गम इस बात का है,
कि वो बात जो बतानी थी,
मगर भूल गया,
वही बात
उन्हें बुरी लगी शायद!
क्यों कि,
"बातों बातों में कोई बात बुरी लगी हो शायद,
मेरा महबूब बिना बात के खफ़ा नहीं होता."

Monday, March 27, 2017

क्या है?
क्यूं है?

रंग है!
बू है!

ख्वाहिशें मिट गईं,
फ़िर भी आरज़ू है!

तीरगी मुकम्मल है,
रोशनी चार सू है।

मन्ज़िलें भटकतीं है,
किसकी ज़ुस्तज़ू है?

जाविदाँ तिश्नगी,
दर्द पुर सुकूं है।

दौलतें,रंजीद: दिल,
मुफ़लिसी बा वुज़ू है।

Tuesday, August 9, 2016

दिल की कही।

बिखर तो मैं जाऊं मानिन्द-ए-फूल मगर,
कोई ऐसा भी हो जो चुन लाये मुझको ।

गुज़रता जा रहा हूँ,बेवफा लम्हों की तरह,
कोई तो रोके, ज़रा पास बिठाये मुझको।

मेरी भी दास्ताँ कहाँ जुदा है तेरे फसाने से,
कोई तो बोले कभी, कोई बताये मुझको ।

झटक ही दे मानिन्द-ए-आब-ए-जुल्फ सही,
बनाके अश्क कोइ पलकों पे सजाये मुझको|

Tuesday, November 11, 2014

एक दिन

एक दिन
दोपहर बीते
आना!
नहीं शाम को,
नहीं,
तब तो मैं
होश में आ चुका होता हूँ।

सारे मिथक,
और सच
उजागर कर दूँगा,
बे हिचक!

हाँ मगर,
अकेले नहीं!
साथ में हो तुम्हारे,
सारे झूठ ,
वो भी
एकदम
नंग धडंग
जैसे पैदा हुये थे वो!