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Sunday, January 24, 2010

मजाक सच में

हालात से लोग मजबूर हो गये है,
निवाले उनके मुंह से दूर हो गये है.

इस कदर इस बात पे न ज़ोर डालो ,
नज़र दुरुस्त है,चश्मे चूर हो गये है

रोशनी ही बेच दी रोटी की खातिर,
तमाम चराग यहां बे नूर हो गये है

हाकिमों ने खुद ही आंखें मींच ली है,
ये सारे कातिल बे कूसूर हो गये है.



8 comments:

  1. रोशनी ही बेच दी रोटी की खातिर,
    तमाम चराग यहां बे नूर हो गये है

    sabhi sher lajwaab hain..
    bas mera dil ispar aaya hai..
    bahut khoob..!!

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  2. रोशनी ही बेच दी रोटी की खातिर,
    तमाम चराग यहां बे नूर हो गये है

    -सभी शेर बेहतरीन निकाले हैं.

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  3. वह क्या बात है बहुत सुन्दर मतला
    हालात से लोग मजबूर हो गये है,
    निवाले उनके मुंह से दूर हो गये है.
    बहुत बहुत आभार

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  4. बहुत बढ़िया!

    नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
    सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥

    गणतन्त्र-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  5. Harek sher apne aapme mukammal hai! Wah!

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  6. हालात से लोग मजबूर हो गये है,
    निवाले उनके मुंह से दूर हो गये है.

    रोशनी ही बेच दी रोटी की खातिर,
    तमाम चराग यहां बे नूर हो गये है ..


    जीवन की कड़वी सच्चाइयों से रूबरू होते शेर ..... लाजवाब ........

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