हालात से लोग मजबूर हो गये है,
निवाले उनके मुंह से दूर हो गये है.
इस कदर इस बात पे न ज़ोर डालो ,
नज़र दुरुस्त है,चश्मे चूर हो गये है
रोशनी ही बेच दी रोटी की खातिर,
तमाम चराग यहां बे नूर हो गये है
हाकिमों ने खुद ही आंखें मींच ली है,
ये सारे कातिल बे कूसूर हो गये है.
रोशनी ही बेच दी रोटी की खातिर,
ReplyDeleteतमाम चराग यहां बे नूर हो गये है
sabhi sher lajwaab hain..
bas mera dil ispar aaya hai..
bahut khoob..!!
रोशनी ही बेच दी रोटी की खातिर,
ReplyDeleteतमाम चराग यहां बे नूर हो गये है
-सभी शेर बेहतरीन निकाले हैं.
वह क्या बात है बहुत सुन्दर मतला
ReplyDeleteहालात से लोग मजबूर हो गये है,
निवाले उनके मुंह से दूर हो गये है.
बहुत बहुत आभार
w a a h !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteनया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥
गणतन्त्र-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
makhta lajawaab hai.
ReplyDeleteHarek sher apne aapme mukammal hai! Wah!
ReplyDeleteहालात से लोग मजबूर हो गये है,
ReplyDeleteनिवाले उनके मुंह से दूर हो गये है.
रोशनी ही बेच दी रोटी की खातिर,
तमाम चराग यहां बे नूर हो गये है ..
जीवन की कड़वी सच्चाइयों से रूबरू होते शेर ..... लाजवाब ........