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Wednesday, February 3, 2010

इकबाले ज़ुर्म!

जब मै आता हूं कहने पे,तो सब छोड के कह देता हूं,
सच न कहने की कसम है पर तोड के कह देता हूं,

दिल है पत्थर का पिघल जाये मेरी बात से तो ठीक,
मै भी पक्का हूं इबादत का,सनम तोड के कह देता हूं.

मै तो सच कहता हूं तारीफ़-ओ-खुशामत मेरी कौन करे,
सच अगर बात हो तो सारे भरम तोड के कह देता हूं.

भरोसा उठ गया है सारे मुन्सिफ़-ओ-वकीलो  से,
मै सज़ायाफ़्ता हूं ये बात कलम तोड के कह देता हूं. 

वो होगें और ’इल्म के सौदागर’ जो डरते है रुसवाई से,
मै ज़ूनूनी हूं ज़माने के  चलन तोड के कह देता हूं.



4 comments:

  1. मै तो सच कहता हूं तारीफ़-ओ-खुशामत मेरी कौन करे,
    सच अगर बात हो तो सारे भरम तोड के कह देता हूं.

    -बेहतरीन..कह दिजिये!

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  2. ग़ज़ब की खुद्दारी भरे शेर हैं .......... मज़ा आ गया पढ़ कर ... लाजवाब ...........

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  3. चलो इसी बहाने एक सच में भी कहे देता हूँ
    इस बार भी जोरदार प्रस्तुति
    आभार ..............

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  4. junooni hun chalan tod ke kah deta hun ...ye mushaire main waha wah kahalwane wali kavita hai,
    kuchh aapke pasand ki mujhe mail kar dena ..main unhe sangeet badhha karke record karna chaunga,badhai..

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बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.