जब मै आता हूं कहने पे,तो सब छोड के कह देता हूं,
सच न कहने की कसम है पर तोड के कह देता हूं,
दिल है पत्थर का पिघल जाये मेरी बात से तो ठीक,
मै भी पक्का हूं इबादत का,सनम तोड के कह देता हूं.
मै तो सच कहता हूं तारीफ़-ओ-खुशामत मेरी कौन करे,
सच अगर बात हो तो सारे भरम तोड के कह देता हूं.
भरोसा उठ गया है सारे मुन्सिफ़-ओ-वकीलो से,
मै सज़ायाफ़्ता हूं ये बात कलम तोड के कह देता हूं.
वो होगें और ’इल्म के सौदागर’ जो डरते है रुसवाई से,
मै ज़ूनूनी हूं ज़माने के चलन तोड के कह देता हूं.
मै तो सच कहता हूं तारीफ़-ओ-खुशामत मेरी कौन करे,
ReplyDeleteसच अगर बात हो तो सारे भरम तोड के कह देता हूं.
-बेहतरीन..कह दिजिये!
ग़ज़ब की खुद्दारी भरे शेर हैं .......... मज़ा आ गया पढ़ कर ... लाजवाब ...........
ReplyDeleteचलो इसी बहाने एक सच में भी कहे देता हूँ
ReplyDeleteइस बार भी जोरदार प्रस्तुति
आभार ..............
junooni hun chalan tod ke kah deta hun ...ye mushaire main waha wah kahalwane wali kavita hai,
ReplyDeletekuchh aapke pasand ki mujhe mail kar dena ..main unhe sangeet badhha karke record karna chaunga,badhai..