कुछ लफ़्ज़ मेरे इतने असरदार हो गय्रे,
चेहरे तमाम लोगो के अखबार हो गये.
मक्कारी का ज़माने में ऐसा चलन हुया,
चमचे तमाम शहर की सरकार हो गये.
यूं ’कडवे सच’ से ज़िन्दगी में रूबरू हुये,
रिश्ते तमाम तब से बस किरदार हो गये.
चंद दोस्तों ने वफ़ा की ऐसी मिसाल दी,
कि दुश्मनों के पैतरे बेकार हो गये.
पहले शेर ही सवा है.
ReplyDeleteहम कडवे सच से ज़िन्दगी में रूबरू हुये,
ReplyDeleteरिश्ते तमाम तब से बस किरदार हो गये.
Sachai bayan karti sundar prastuti ke liye dhanyavaad...
हम कडवे सच से ज़िन्दगी में रूबरू हुये,
ReplyDeleteरिश्ते तमाम तब से बस किरदार हो गये.
चंद दोस्तों ने वफ़ा की ऐसी मिसाल दी,
कि दुश्मनों के पैतरे बेकार हो गये...
एक से बढ़ कर एक ,.... जीवन की हक़ीकत बयान करते हुवे .... धमाकेदार शेर .....
कमाल का लिखा है आपने .....
bahut hi meaningful hai,ye aapki kavita ,,,,,behad shandar
ReplyDeleteVIKAS PANDEY
http://www.vicharokadarpan.blogspot.com/
चंद दोस्तों ने वफ़ा की ऐसी मिसाल दी,
ReplyDeleteकि दुश्मनों के पैतरे बेकार हो गये.
सुन्दर रचना के लिए
आभार ..............
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
ReplyDeleteअच्छा है सर। कुछ मिस्रे तो यकीनन लाजवाब बुने गये हैं। खासकर "कि दुश्मनों के पैतरे बेकार हो गये" वाला।
ReplyDeleteफिर यहां टिप्पणी बक्से के ऊपर आपका लिखा संदेशा पढ़ता हूं तो सोचता हूं कि टिप्पणी में कुछ और लिखूं।
वैसे तो आपने कहीं भी अपनी इस रचना को ग़ज़ल की संज्ञा नहीं दी है, लेकिन कुछ टिप्पणीकारों ने "शेर" कहकर तारीफ़ की है। मेरे ख्याल से ग़ज़ल कहलाने के लिये ये रचना तनिक और मेहनत माँगती है।
मान्यवर आप इस Blog के पाठक हैं, जो दिल में आये बेहिचक कहें! आपकी भावनाओ और विचारों का स्वागत है!
ReplyDeleteआप बहुत बढ़िया लिखती हैं ! होली पर शुभकामनायें !
ReplyDeleteसतीश सक्सेना ने कहा…
ReplyDeleteआप बहुत बढ़िया लिखती हैं ! होली पर शुभकामनायें !
२७ फरवरी २०१० ८:३३ AM
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पर सच ये है कि मैं कभी भी "लिखती" नहीं हूं, मैं तो हमेशा "लिखता" हूं!
Any way Thanks for visiting "Sach Mein" and appreciating.
सच में पर आते रहें.
Holi mubarak ho!
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