थाली के बैगंन,
लौटे,
खाली हाथ,भानुमती के घर से,
बिन पैंदी के लोटे से मिलकर,
वहां ईंट के साथ रोडे भी थे,
और था एक पत्थर भी,
वो भी रास्ते का,
सब बोले अक्ल पर पत्थर पडे थे,
जो गये मिलने,पत्थर के सनम से,
वैसे भानुमती की भैंस,
अक्ल से थोडी बडी थी,
और बीन बजाने पर,
पगुराने के बजाय,
गुर्राती थी,
क्यों न करती ऐसा?
उसका चारा जो खा लिया गया था,
बैगन के पास दूसरा कोई चारा था भी नहीं,
वैसे तो दूसरी भैंस भी नहीं थी!
लेकिन करे क्या वो बेचारा,
लगा हुया है,तलाश में
भैंस मिल जाये या चारा,
बेचारा!
बीन सुन कर
नागनाथ और सांपनाथ दोनो प्रकट हुये!
उनको दूध पिलाने पर भी,
उगला सिर्फ़ ज़हर,
पर अच्छा हुआ के वो आस्तीन में घुस गये,
किसकी? आज तक पता नहीं!
क्यों कि बदलते रहते है वो आस्तीन,
मौका पाते ही!
आयाराम गयाराम की तरह।
भानुमती के पडोसी भी कमाल के,
जब तब पत्थर फ़ेकने के शौकीन,
जब कि उनके अपने घर हैं शीशे के!
सारे किरदार सच्चे है,
और मिल जायेंगे
किसी भी राजनीतिक समागम में
प्रतिबिम्ब में नहीं,
नितांत यर्थाथ में।
अब ऐसे भी आज्ञाकारी नहीं हैं हम की यूं कहा मान लेंगे:)
ReplyDeleteमस्त मिक्स्ड वेजिटेबल बनायी है मुहावरों की, यथार्थ में!
भाई संजय को सलाम ढाबा चल पडेगा....!
ReplyDeleteChaahe khichdi ban jaye fir Bhi rahenge ek hi ... Manch par to inhe hi aana hai ... Kanch ke ghar hote huve Bhi patthar nahi padhenge inke ghar ... Sahi khaka khaincha hai ...
ReplyDeleteHmmmm! Muhawaron ka kya badhiya prayog kiya hai!
ReplyDeletemast mast...:)
ReplyDeletebade majedaar ho aapp:)
सलाम सलाम सलाम
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं....
nice
ReplyDeletemuhavron ka sundar prayog.........
ReplyDeleteswaagat hai aapka
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.