झूँठ बोलें,सच छुपायें,
आओ चलो पैसे कमायें!
दिल को तोडें,दर्द दें,
सच से हम नज़रें बचायें
आऒ चलो पैसे कमायें!
भूखे नंगो को चलो,
सपने दिखायें,
आऒ चलो पैसे कमायें!
मौत बाँटें,औरतों के
जिस्म टीवी पर दिखायें,
आऒ चलो पैसे कमायें!
लडकियों को कोख में मारे,
गरीबो को सतायें,
आऒ चलो पैसे कमायें!
किसने देखी है कयामत,
आये न आये,
मिल के धरती को चलो
जन्नत बनायें,
मिल के धरती को चलो
जन्नत बनायें,
आऒ चलो पैसे कमायें!
देश उसकी अस्मिता,
सुरक्षा को फ़िर देख लेंगें
मौका सुनहरी है,
अभी इसको भुनायें,
आऒ चलो पैसे कमायें!
खुद निरक्षर,
मगर ज्ञान छाटें,
डिग्रियाँ बाँटें, बच्चों को भरमायें
आओ चलो पैसे कमायें
नेकी और पूछ पूछ? चलो जी, कित्थे चलना है? :)
ReplyDeleteभाई चलना कित्थे है? सिर्फ़ अपनी आत्मा का कत्ल करना पडेगा और नोटों की ढेरी पे सोने की आदत डालनी पडेगी!
Deleteumda abhivyakti ...
ReplyDeleteआज के अर्थशास्त्र का सही आकलन
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteइस कडुवे अर्थशास्त्र कों हूबहू लिखा है ...
ReplyDeleteइंसान दरिंदा ... अब कोई ज्यादा फर्क नहीं रह गया ...
धन्यवाद!
Deleteसशक्त भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ..आभार
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteकाश! कोई ना पढ़ पाए इस तरह का अर्थशास्त्र...और जो पढें फेल हो जाएँ.....
ReplyDeleteमैं ने भी इसी लिये लिखा है कि कोई न पढे ये काली विद्या!
Deleteक्या बात हैं जी .......सटीक लेखन
ReplyDeleteबात आप तक पँहुची शुक्रिया!
Deletebahut bahut badhiya !!
ReplyDeleteपसंद करने के लिये आप का शुक्रिया!
Deletekaise bhi aao chalen paise kamayen...:)
ReplyDeleteआज का दस्तूर यही है!
Deletedeeper and deeper insight toward social economy of life,nice presentation with inner feelings
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