Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me! बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.
भाई, इसी खोज में तो सारी कायनात, सारे धर्म-मजहब, सारे दार्शनिक-वैज्ञानिक लगे हैं| मालूम चले तो हमसे भी शेयर करना.
ReplyDeleteबेशक!! शाश्वत सुख ही उपाय है। वह आत्मा में ही बसा है पर सहज ही विश्वास नहीं होता!!
ReplyDeleteक्या पता? कब और कैसे आये मुकम्मल सुकूं,
ReplyDeleteWaqayi nahee pata! Chhoti lekin gahri rachana.
ab rooh ko aram kahan. jab itne sare sawal...waise bhi ye jindagi kuch na kuch badalti hi rehti hai jeevan me ...sunder bhavabhivyakti.........
ReplyDeleteवाह क्या बात कही हैं ....बहुत खूब
ReplyDeleteइसी सकून की तलाश में शरीर घटता जाता है .. पर रूह को आराम नहीं मिलता और भूखा शरीर खत्म हो जाता है ..
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत
ReplyDelete(अरुन =arunsblog.in)
तन-मन को इतनी तकलीफ तो रूह को सुकून कहाँ से आए? प्रश्न भी और उत्तर भी, सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeletelajwab
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