मैं और करता भी क्या,
वफ़ा के सिवा!
मुझको मिलता भी क्या,
दगा के सिवा!
बस्तियाँ जल गई होंगी,
बचा क्या धुआँ के सिवा!
अब गुनाह कौन गिने,
मिले क्या बद्दुआ के सिवा!
कहाँ पनाह मिले,
बुज़ुर्ग की दुआ के सिवा!
दिल के लुटने का सबब,
और क्या निगाह के सिवा!
ज़ूंनून-ए-तलाश-ए-खुदा,
कुछ नही इश्क-ए-बेपनाह के सिवा!
घुमड रहा है,
गुबार बन के कहीं,
अगर तू सच है तो,
ज़ुबाँ पे आता क्यों नही?
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"ईश्वरीय कण" |
सच अगर है तो,
तो खुद को साबित कर,
झूंठ है तो,
बिखर जाता क्यों नहीं?
आईना है,तो,
मेरी शक्ल दिखा,
तसवीर है तो,
मुस्कुराता क्यों नहीं?
मेरा दिल है,
तो मेरी धडकन बन,
अश्क है,
तो बह जाता क्यों नहीं?
ख्याल है तो कोई राग बन,
दर्द है तो फ़िर रुलाता,
क्यों नही?
बन्दा है तो,
कोई उम्मीद मत कर,
खुदा है तो,
नज़र आता क्यों नहीं?
बात तेरे और मेरे बीच की है,
चुप क्यों बैठा है?
बताता क्यों नहीं?