जिस्मों की ये मजबूरियाँ,
रूहों के तकाज़े,
इंसान लिये फिरते हैं,
खुद अपने ज़नाजे।
रूहों के तकाज़े,
इंसान लिये फिरते हैं,
खुद अपने ज़नाजे।
आँखो मे अँधेरे हैं,
हाथों में मशालें,
अँधों से है उम्मीद
के वो पढ लें रिसाले!
हाथों में मशालें,
अँधों से है उम्मीद
के वो पढ लें रिसाले!
हमको नहीं है इल्म
कैसे पार लगें हम,
लहरों की तरफ़ देखें,
या कश्ती को संभालें!
कैसे पार लगें हम,
लहरों की तरफ़ देखें,
या कश्ती को संभालें!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएँ!
हमको नहीं है इल्म
ReplyDeleteकैसे पार लगें हम,
लहरों की तरफ़ देखें,
या कश्ती को संभालें! ... बहुत बढ़िया
वाह बहुत बढिया ...उम्दा
ReplyDeleteशुभकामनाएँ
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
ReplyDeleteब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
हम तो कायल हो गए। बहुत खूब
ReplyDelete