ज़ख्म देता है कोई,मुझे कोई दवा देता है,
कौन ऐसा है,यहाँ जो मुझको वफ़ा देता है!
ये बारिशें भी कब यहाँ साल भर ठहरतीं है,
हर नया मौसम मिरे ज़ख्मों को हवा देता है।
तेरी बातें न करूँ मैं, अगर दीवारों से,
है कोई काम?जो दीवानों को मज़ा देता है!
दुश्मनों से ही है अब एक रहम की उम्मीद,
है कोई दोस्त, जो, मरने की दुआ देता है?
कौन ऐसा है,यहाँ जो मुझको वफ़ा देता है!
ये बारिशें भी कब यहाँ साल भर ठहरतीं है,
हर नया मौसम मिरे ज़ख्मों को हवा देता है।
तेरी बातें न करूँ मैं, अगर दीवारों से,
है कोई काम?जो दीवानों को मज़ा देता है!
दुश्मनों से ही है अब एक रहम की उम्मीद,
है कोई दोस्त, जो, मरने की दुआ देता है?
ये बारिशें भी कब यहाँ साल भर ठहरतीं है,
ReplyDeleteहर नया मौसम मिरे ज़ख्मों को हवा देता है।
sunder bhav
rachana
आप का शुक्रिया!पसंद करके लिये।
Deleteये बारिशें भी कब यहाँ साल भर ठहरतीं है,
ReplyDeleteहर नया मौसम मिरे ज़ख्मों को हवा देता है..
बहुत लाजवाब शेर ... ओर अंतिम शेर भी कमाल का है ... ज़माने की हकीकत बयाँ कर दी इनमें आपने ...
दिगम्बर भाई! आपकी हौसला अफ़ज़ाई मिली,लिखना सफ़ल हुआ, शुक्रिया।’सच में’ के प्रति प्रेम बनाये रखें।
Deleteबहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteआपका शुक्रिया,रचना के भाव तक पहुँच कर विचारों से अवगत करना ने लिये। "सच में’ पर आतें रहें!
Deleteबहुत खूब लिखा आपने | आभार
ReplyDeleteआपका आभार के आपने पसंद किया और समय निकाल कर प्रशंसा की!
Delete