मैं कब का,निकल आता
तेरी जुदाई के सदमें से,
और भूल भी जाता तुझको,
मगर कुदरत की नाइंसाफ़ियों का क्या करूँ?
तुझे याद भी नहीं होगा,
वो ’मेरे’ गाल का तिल,
जिसे चूमते हुये,
तूने दिखाया था,
अपने गाल का तिल!
तेरी जुदाई के सदमें से,
और भूल भी जाता तुझको,
मगर कुदरत की नाइंसाफ़ियों का क्या करूँ?
तुझे याद भी नहीं होगा,
वो ’मेरे’ गाल का तिल,
जिसे चूमते हुये,
तूने दिखाया था,
अपने गाल का तिल!
बहुत खूब
ReplyDeleteआपका शुक्रिया! पसंद करके हौसला बढाने के लिये!
Deleteबेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteपसंद करने लिये आभार!
Deleteवाह .. क्या बात है ... तिल में छुपी यादों का अम्बार ...
ReplyDeleteदिगम्बर भाई! विरह और उसको न भूल पाने की पीडा शायद आप तक न पहुँच पाई!
Deleteआपका अनेक धन्यवाद! दाद के लिये!
वाह वाह क्या बॅया है!
ReplyDeletePheli marteba phedha dil khush ho gya aysa legs her lefej dodh mai dhula ho
ReplyDelete’mustak hakim’ जी आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया, मेरे लफ़्ज़ों को सराहने के लिये.
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