खुद से छिप कर ऐसा करना एक दिन,
मुझसे छिप कर मुझसे मिलना एक दिन!
सच की उस चिलमन से निकलना एक दिन,
संग मेरे गलियों में भटकना एक दिन!
मैं चला जाऊं भी अगर इस बज़्म से,
तुम मुझे फिर से बुलाना एक दिन।
याद मेरी आये तुमको के नहीं,
तुम मेरे ख्वाबों मे आना एक दिन।
शिकवे कुछ सच्चे से और कुछ झूठ भी,
खूब करना और रुलाना एक दिन।
डूबता सूरज हो और मद्धम रोशनी,
नदिया किनारे मिलने आना एक दिन।
_कुश शर्मा
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ अक्टूबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहृदय से आभार ! आशा है आप अपने ब्लौग पर आते रहेंगे!
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ अक्टूबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
मुझसे छिप कर मुझसे मिलना एक दिन!
ReplyDeleteवाह!!!
क्या बात...
शिकवे कुछ सच्चे से और कुछ झूठ भी,
खूब करना और रुलाना एक दिन।
बहुत ही सुंदर।
आपका आभार आशा है ,स्नेह सदा बना रहेगा !
Deleteवाह । बेहतरीन
ReplyDeleteसंगीता जी आप मेरे ब्लॉग को ' पुन: सराहना मेरा हौसला बढ़ायेगा ! आभार!
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