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Thursday, April 28, 2011

समुन्दर के किनारे!



कल शाम मैं समुन्दर के साथ था,
बडी ही अजीब बात है,
न तो मैं वहाँ उसके बुलावे पे गया था,
और न ही मुझे उम्मीद थी कि,
मैं कभी मिल पाऊगाँ,
"समुन्दर"जैसी बडी शैह से!



पर हर लम्हा जो मैं गुजार आया,
’समुन्दर’ के साथ,
अपने आप में ’एक मुकम्मल ज़िन्दगी’है!

आप को गर यकीं न आये,
तो अभी बंद करिये अपनी आँखें,
और मुकम्मल तन्हाई में,
कोशिश कीजिये,
समुन्दर को 

सुनने की,
सूघंने की ,
अपनी ज़िल्द पर उसकी,
ठंडी मगर खारी हवा,
को महसूस करने की,

यकीं मानिये,
समुन्दर से गहरा और शांत कुछ भी नही!
और हम सब,


फ़िरते है यहाँ से वहाँ
लिये  अपना अपना,
एक एक समुन्दर 
प्यासे और अशांत!  


और बेखबर भी कि,
हम सब एक समुन्दर है!