गर्द को साफ़ किया मैने,
उंगली को ज़ुबान से नम कर के,
पर ’वो’ नहीं बोली!
मेरी आंखे नम थीं,
पर ’वो’ नहीं बोली,
शायद वो बोलती,
गर वो तस्वीर न होती,
या शायद
गर वो मेरी तरह
गम ज़दा होती
इश्क में!
वो नहीं थी!
न तस्वीर,
न तस्सवुर,
एक अहसास था,
जिसे मैने ज़िन्दगी से भी ज़्यादा जीने की कोशिश की थी!
टूट गया!
क्यो कि
ख्वाब गर जो न टूटे,
तो कहां जायेंगे?
जिन के दिल टूटे हैं
वो खुद को भला क्या समझायेंगे!
शायद ये के:
"टूट जायेंगे तो किरचों के सिवा क्या देगें!
ख्वाब शीशे के हैं ज़ख्मों के सिवा क्या देंगें,"
बहुत सुन्दर कविता है।
ReplyDeleteदीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आप सबको ढेरों शुभकामनाएँ!
Bahut khoob!
ReplyDeleteWow... I love your writing. Loved the way it ended. :)
ReplyDelete'कविता’ पर मिली दाद!
ReplyDeleteवन्दना said...
ohhhhhh...........dard se bheegi ,ek ek zakhm ko ujagar karti rachna.....behtreen.
October 20, 2009 4:35 AM
रश्मि प्रभा... said...
या शायद
गर वो मेरी तरह
गम ज़दा होती
इश्क में!
waah
October 20, 2009 6:51 AM
shama said...
Waah kahun yaa kahun, uff ! ' sach' hai, khwab sheeshe ke hain, zakhmon ke siva kya denge?
October 20, 2009 7:30 AM
ओम आर्य said...
kahane ko shabd kam pad gaye ............behad sundar rachana!
October 20, 2009 9:07 AM
MANOJ KUMAR said...
ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती तथा रिश्तों की पाक़ीज़गी का अहसास मन को गहरे भिंगो देता है।
October 20, 2009 9:13 AM
ktheLeo said...
वो दर्द ही क्या जो उस आंख को भी न भिगो दे, जिसे कभी दर्द का अहसास ही न हुआ हो, जिन दर्द के अहसासों को मैने उंकेरने की कोशिश की वो सफ़ल हुई,आप सब का तहे दिल से शुक्रिया!
कभी कभी "सच म्रें" (www.sachmein.blogspot.com) पर भी आने की इनायत करें!
दाद का शुक्रिया एक बार फ़िर दिल की गहराईयों से!
October 20, 2009 9:25 AM
क्यो कि
ReplyDeleteख्याब गर जो न टूटे,
तो कहां जायेंगे?
जिन के दिल टूटे हैं
वो खुद को भला क्या समझायेंगे!
वाह !! ख्वाब गर न टूटे तो भला कहाँ जायेंगे ....कितनी सही बात kahi है आपने..
और ये भी कि जिनके दिल टूटे हों वो कैसे खुद को समझायेंगे......खूबसूरत...!!
'ख़्वाब' कि वर्तनी ठीक कर लीजिये...
ReplyDeleteएक अहसास था,
ReplyDeleteजिसे मैने ज़िन्दगी से भी ज़्यादा जीने की कोशिश की थी!
kavita ke bare me jo bhi kahungee kam hoga...ik bolti huee si kavita.....
एक अहसास था,
ReplyDeleteजिसे मैने ज़िन्दगी से भी ज़्यादा जीने की कोशिश की थी!
ek ehsaas ko zindagi se bhi jyada jeene ki koshish hi hai jo sach aur jhooth ka fark mita deti hai..
bahut hi gehri baat kahi hai aapne
bahut achha likha hai
-Sheena
Hello,
ReplyDeleteThis is the 1st time I came across your creation...!!
I just read this one yet and it is brilliantly composed.
From the starting till the end I just want to say "HATS OFF!"
Best lines...
"टूट जायेंगे तो किरचों के सिवा क्या देगें!
ख्याब शीशे के हैं ज़ख्मों के सिवा क्या देंगें,"
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
शुक्रिया आप सब की नज़रे इनायत का,मेरा लिखना सफ़ल हुआ!
ReplyDeleteवाह!! कितनी मासूम सी रचना है, इज़हार और इसरार करती. विलम्ब के लिये क्षमाप्रार्थी हूं. अब नियम नहीं टूटेगा.
ReplyDeleteKuch aur vichaar!
ReplyDeleteदिगम्बर नासवा said...
"टूट जायेंगे तो किरचों के सिवा क्या देगें!
ख्याब शीशे के हैं ज़ख्मों के सिवा क्या देंगें,"....
बहुत खूब लिखा है ........... दर्द की गहरी लकीर नज़र आ रही है इस शेर में ...... भीगे हुवे एहसास की बूंदे चकम रही हैं इस कविता में ............ बहुत ही लाजवाब लिखा है ..................
October 20, 2009 10:34 PM
योगेश स्वप्न said...
"टूट जायेंगे तो किरचों के सिवा क्या देगें!
ख्याब शीशे के हैं ज़ख्मों के सिवा क्या देंगें,"
bahut khoob. umda rachna.
October 21, 2009 8:37 AM
ρяєєтι said...
वो नहीं थी!
न तस्वीर,
न तस्सवुर,
एक अहसास था - जिसे मैने ज़िन्दगी से भी ज़्यादा जीने की कोशिश की थी!
waahhhhhhh... jindgi ehsaas hi ho hai..
November 9, 2009 12:17 AM
Dipak 'Mashal' said...
kisi ke dil ke dard ko udelti si hai ye kavita...
fir ek baar sundar rachna ke liye badhai..
Jai Hind...
November 10, 2009 4:22 PM