जान की बाज़ी लगाये बैठे हैं.
तुम को मालूम ही नहीं शायद,
दुश्मन नज़रे गडाये बैठे हैं.
सलवटें बिस्तरों पे रहे कायम,
नींदे तो हम गवांये बैठें हैं
फ़ूल लाये हो तो गैर को दे दो,
हम तो दामन जलाये बैठे हैं.
मयकदे जाते तो गुनाह भी था,
बिन पिये सुधबुध गवांये बैठे हैं.
सच न कह्ता तो शायद बेह्तर था,
सुन के सच मूंह फ़ुलाये बैठे हैं.
बहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteचमन को हम सजाये बैठे हैं
जान की बाज़ी लगाये बैठे हैं..
तुम को मालूम ही नहीं शायद,
दुश्मन नज़रे गडाये बैठे हैं.
सलवटें बिस्तरों पे रहे कायम,
नींदे तो हम गवांये बैठें हैं
फ़ूल लाये हो तो गैर को दे दो,
हम तो दामन जलाये बैठे हैं
हर शेर लाजवाब है जी..
"कविता"पर मिली प्रशंसायें!
ReplyDeleteओम आर्य said...
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
October 15, 2009 10:47 PM
shama said...
Leo ji,
Bade dinon kee khamoshee ke baad aagman behad achha laga...aapkee rachnayen' kavita' ko nikhar pradan kartee hain...
October 16, 2009 3:07 AM
रश्मि प्रभा... said...
bade hi khoobsurat ehsaas
October 16, 2009 3:57 AM
ktheLeo said...
शमा जी,
"कविता" और "सच में" (www.sachmein.blogspot.com)
के सभी पाठकों के आपके Blog के माध्यम से
"शुभ दीपावली" may god light of knowledge and happiness be all around.
October 16, 2009 6:45 AM
योगेश स्वप्न said...
behatareen rachna,,,,,,,,,,आपको और आपके परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं.
October 16, 2009 6:25 PM
दिगम्बर नासवा said...
खूबसूरत हैं सब शेर .......... लाजवाब ग़ज़ल है ......
ये दीपावली आपके जीवन में नयी नयी खुशियाँ ले कर आये .........
बहुत बहुत मंगल कामनाएं .........
October 18, 2009 4:07 AM
ktheLeo said...
आप सब का तहे-दिल से शुक्रिया ,हौसलाअफ़ज़ाई का "सच में" और "कविता" के प्रति प्रेम बनाये रखें!
October 18, 2009 11:49 AM
Mrs. Asha Joglekar said...
बेहतरीन गज़ल सबके सब शेर बढिया ।
October 18, 2009 9:17 PM
सच न कह्ता तो शायद बेह्तर था,
ReplyDeleteसुन के सच मूंह फ़ुलाये बैठे हैं.
Zamane ka sach likha hai sir aapne..
Kuch aur sarahnaaein!
ReplyDeleteवन्दना said...
bahut hi sundar sher........ek se badhkar ek hai
October 20, 2009 4:36 AM
lifes' like this.. never fair never right said...
Bahut he badhiyan likha hai..
November 2, 2009 11:55 AM
Dipak 'Mashal' said...
ek maine bhi likhi thi gaur farmaiyega-
'Mere bistar pe
neend jaag rahi thi
aur main
tab tak
kursi pe uneenda baitha
sooni deewar pe
na jane kitni
puraani yadon ke
chalchitra dekh aaya...'
lajwab kar diya aapne magar...
jai Hind...
November 10, 2009 4:19 PM
shama said...
Dipakji,
Aapki ye rachna aapke blog pe padhi thi, behad sundar hain...aap har kisee ke takkar ka likhte hain...!
November 10, 2009 10:02 PM