Little late for anniversary of 26/11 notwithstanding रचना आप के सामने hai :
इस तीरगी और दर्द से, कैसे लड़ेंगे हम,
मौला तू ,रास्ता दिखा अपने ज़माल से.
मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
जब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.
चारागर हालात मेरे, अच्छे बता गया,
कुछ नये ज़ख़्म मिले हैं मुझे गुज़रे साल से.
लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से,
किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से.
और ये दो शेर ज़रा मुक़्तलिफ रंग के:
ऐसा नहीं के मुझको तेरी याद ही ना हो,
पर बेरूख़ी सी होती है,अब तेरे ख़याल से.
दो अश्क़ उसके पोंछ के क्या हासिल हुया मुझे?
खुश्बू नही गयी है,अब तक़ रूमाल से.
मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
ReplyDeleteजब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.
ye aaj ka sach hai..bahut khoob..
चारागर हालात मेरे, अच्छे बता गया,
कुछ नये ज़ख़्म मिले हैं मुझे गुज़रे साल से.
lajwaab sher hain ye...
ऐसा नहीं के मुझको तेरी याद ही ना हो,
पर बेरूख़ी सी होती है,अब तेरे ख़याल से.
waah waah...ab berukhi si hoti hai tere khyal se..
lajwaab..
दो अश्क़ उसके पोंछ के क्या हासिल हुया मुझे?
खुश्बू नही गयी है,अब तक़ रूमाल से.
aur is sher ne to bas qyamat dhaa diya hai..
अदा जी,
ReplyDeleteआप को पसंद आ गया कलाम लिखना सफ़ल हुआ!
नज़रे इनायत बनाये रखें "सच में" पर आतें रहें यूं ही हमेशा!
दो अश्क़ उसके पोंछ के क्या हासिल हुया मुझे?
ReplyDeleteखुश्बू नही गयी है,अब तक़ रूमाल से.
वाह...वाह...!
ये खुश्बू तो यहाँ तक भी आ रही है!
बहुत बढ़िया साहब!
मयकं जी,
ReplyDeleteआप का एक विशेष स्थान है, मेरे ब्लोग पर!तहे दिल से शुक्रिया,आप की मेहरबानी जो मेरे जज़्बात तक पहुचें और प्रशंसा की,लिखना सकारत हुआ. स्नेह बनाये रखें!
चारागर हालात मेरे, अच्छे बता गया,
ReplyDeleteकुछ नये ज़ख़्म मिले हैं मुझे गुज़रे साल से.
Lajawaab! Shabdon ka esa jadu! Wah!
ऐसा नहीं के मुझको तेरी याद ही ना हो,
ReplyDeleteपर बेरूख़ी सी होती है,अब तेरे ख़याल से.
बहुत ही खूबसूरत शेर हैं .... लाजवाब .......
मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
ReplyDeleteजब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.
बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
7 Comments form Blog "Kavita"
ReplyDeleteयोगेश स्वप्न said...
behatareen.
December 2, 2009 5:27 PM
shama said...
'Kuchh naye zakhm mile hain..'kya baat hai....Aapki behtareen rachnaon me se ye ek hai!
December 3, 2009 12:06 AM
वन्दना अवस्थी दुबे said...
लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से,
किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से.
बहुत खूब शेर लिखे हैं आपने.
December 3, 2009 12:54 AM
रश्मि प्रभा... said...
bahut hi gambheer khyaal
December 3, 2009 1:09 AM
दिगम्बर नासवा said...
दो अश्क़ उसके पोंछ के क्या हासिल हुया मुझे?
खुश्बू नही गयी है,अब तक़ रूमाल से....
कमाल का शेर है ........ भाई वाह निकल गया मुँह से पड़ते ही ...............
December 3, 2009 2:31 AM
वाणी गीत said...
मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
जब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.
क्या बात कही है ....!!
दो अश्क़ उसके पोंछ के क्या हासिल हुया मुझे?
खुश्बू नही गयी है,अब तक़ रूमाल से....
आंसुओं की खुशबू ...नया ख़याल है ....!!
December 3, 2009 3:11 AM
ktheLeo said...
आप सबों की मेहरबानी जो मेरे जज़्बात तक पहुचें और प्रशंसा की,लिखना सकारत हुआ. स्नेह बनाये रखें!
December 3, 2009 7:02 AM