ये सब हैं चाहने वाले!और आप?
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Thursday, December 9, 2010
श्श्श्श्श्श्श्श्श! किसी से न कहना!
मैने सोच लिया है,
अब सच के बारे में कोई बात नहीं करुंगा,
खास तौर से मैं,
अपने आपसे!
वैसे भी!
सोये हुये भिखारी के घाव पर,
भिनभिनाती मक्खियों की तरह,
कहाँ सुकून से रहने देती है,
रोज़ टीवी से सीधे मेरे ज़ेहेन में ठूंसी जाने वाली खबरें!
कैसे कोई सोच सकता है? और वो भी,
सच के बारे मैं!
चौल की पतली दीवार से,
छन छन कर आने वाली,
बूढे मियाँ बीवी की रोज़ की झिकझिक की तरह,
हिंसा की सूचनायें,जो मेरा समाज
बिना मेरी इज़ाजत के प्रसारित करता रहता है,
मुझे ख्याब तो क्या?
एक पुरसुकून नींद भी नहीं लेने देतीं!
क्या होगा?
बचपन के सपनो का!
तथा कथित महानायको की भीड,
और सुरसा की तरह मूँह बाये
हमारी आकाक्षाओं की अट्टालिकायें,
उस पर यथार्थ की दलदली धरातल,
एक साथ जैसे एक साजिश के तहत,
लेकर जा रही है बौने इंसान को
और भी नीचे!
शायद पाताल के भी पार!
अब सच के बारे में,
मैं कोई बात नहीं करुंगा!
किसी से भी!
खुद अपने आप से भी नहीं!
Tuesday, November 30, 2010
’इश्क और तेज़ाब’
सूर्य की किरणों से ,
क्लोरोफ़िल का शर्करा बनाना!
शुद्ध प्राकृतिक क्रिया है,
इस में कौन सा ज्ञान है,
यह तो साधारण सा विज्ञान का सिद्धांत है!
सौर्य ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन।
एक दम सही फ़रमाया आपने,
मानव, उसका विज्ञान,एवं विज्ञान का ज्ञान महान है!
कुछ और प्राकृतिक या यूँ कहें,
कभी नैश्रर्गिक कही जाने वाली
प्रक्रियाओं को विज्ञान की नज़र से देखें!
प्रेम! सुना है आपने,
चाहत, इश्क,लगाव,
मोह्ब्बत,प्यार शायद और भी,
कुछ नाम होंगें
विज्ञान की नज़र में,
दिमाग के अंदर होने वाला,
एक रासायनिक परिवर्तन का
मानवीय संबंधो पर होने वाल प्रभाव!
एक चलचित्र के नायक के मुताबिक
दिमाग का ’कैमिकल लोचा’!
इसी कैमीकल इश्क के मारे,
कुछ ’तथाकथित’ आशिक,
अपनी ’तथाकथित’ माशूकाओं पर
छिडक डालते हैं ’तेज़ाब’
’वीभत्स प्रेम’
का प्रदर्शन!
...............कैमीकली!
क्लोरोफ़िल का शर्करा बनाना!
शुद्ध प्राकृतिक क्रिया है,
इस में कौन सा ज्ञान है,
यह तो साधारण सा विज्ञान का सिद्धांत है!
सौर्य ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन।
एक दम सही फ़रमाया आपने,
मानव, उसका विज्ञान,एवं विज्ञान का ज्ञान महान है!
कुछ और प्राकृतिक या यूँ कहें,
कभी नैश्रर्गिक कही जाने वाली
प्रक्रियाओं को विज्ञान की नज़र से देखें!
प्रेम! सुना है आपने,
चाहत, इश्क,लगाव,
मोह्ब्बत,प्यार शायद और भी,
कुछ नाम होंगें
विज्ञान की नज़र में,
दिमाग के अंदर होने वाला,
एक रासायनिक परिवर्तन का
मानवीय संबंधो पर होने वाल प्रभाव!
एक चलचित्र के नायक के मुताबिक
दिमाग का ’कैमिकल लोचा’!
इसी कैमीकल इश्क के मारे,
कुछ ’तथाकथित’ आशिक,
अपनी ’तथाकथित’ माशूकाओं पर
छिडक डालते हैं ’तेज़ाब’
’वीभत्स प्रेम’
का प्रदर्शन!
...............कैमीकली!
Tuesday, August 10, 2010
मर्दशुमारी!
जनगणना में सुना है अब ज़ात पूछी जायेगी,
इन्सान से हैवानियत की बात पूछी जायेगी!
कर चुके हम हर तरह से अपने टुकडे,
मुर्दों से अब उनकी औकात पूछी जायेगी?
दे सके न भूख से मरतों को दाना,
क्या मिलें आज़ादी की सौगात पूछी जायेगी?
गंदगी, आलूदगी फ़ैली है घरों में,
कैसे बदलेगी काइनात पूछी जायेगी?
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आलूदगी: Contamination
मर्दशुमारी: जनगणना
इन्सान से हैवानियत की बात पूछी जायेगी!
कर चुके हम हर तरह से अपने टुकडे,
मुर्दों से अब उनकी औकात पूछी जायेगी?
दे सके न भूख से मरतों को दाना,
क्या मिलें आज़ादी की सौगात पूछी जायेगी?
गंदगी, आलूदगी फ़ैली है घरों में,
कैसे बदलेगी काइनात पूछी जायेगी?
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आलूदगी: Contamination
मर्दशुमारी: जनगणना
Wednesday, December 2, 2009
तीरगी का सच!
Little late for anniversary of 26/11 notwithstanding रचना आप के सामने hai :
इस तीरगी और दर्द से, कैसे लड़ेंगे हम,
मौला तू ,रास्ता दिखा अपने ज़माल से.
मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
जब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.
चारागर हालात मेरे, अच्छे बता गया,
कुछ नये ज़ख़्म मिले हैं मुझे गुज़रे साल से.
लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से,
किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से.
और ये दो शेर ज़रा मुक़्तलिफ रंग के:
ऐसा नहीं के मुझको तेरी याद ही ना हो,
पर बेरूख़ी सी होती है,अब तेरे ख़याल से.
दो अश्क़ उसके पोंछ के क्या हासिल हुया मुझे?
खुश्बू नही गयी है,अब तक़ रूमाल से.
Saturday, July 11, 2009
जाने क्या?
शमा जले अन्धेरे में ये मज़बूरी है.
दर्द मज़लूम का न गर परेशान करे,
ज़िन्दगी इंसान की अधूरी है.
ज़रूरी काम छोड के इबादत की?
समझ लो खुदा से अभी दूरी है.
सच कडवा लगे तो मैं क्या करूं,
इसको कहना बडा ज़रूरी है.
Friday, June 12, 2009
नज़दिकीयों का सच!(Part II)
रास्ते में संग भी थे,
खार थे, थी मुश्किलें.
मैं मगर आगे न बढता,
लाचारियां इतनी न थीं.
शहर के पागल सजर में
ढूंडता उसको कहां,
उस अज़ी्जो आंशनां की,
नीशानियां इतनी न थीं.
दोस्तों की संगदिली का,
क्या करें सबसे गिला,
इक ज़रा सी बेरुखी थी,
बेईमानियां इतनी न थीं.
वो सरापा सामने था,
या था वो बस एक सराब,
सरे शोरीदः हाल था,
नादानियां इतनी न थीं.
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सरापा :- आमने सामने/Face to face
सराब :- मृगतृष्णा/Mirage
सरे शोरीदः :-इश्क का पागलपन
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