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Thursday, April 28, 2011

समुन्दर के किनारे!



कल शाम मैं समुन्दर के साथ था,
बडी ही अजीब बात है,
न तो मैं वहाँ उसके बुलावे पे गया था,
और न ही मुझे उम्मीद थी कि,
मैं कभी मिल पाऊगाँ,
"समुन्दर"जैसी बडी शैह से!



पर हर लम्हा जो मैं गुजार आया,
’समुन्दर’ के साथ,
अपने आप में ’एक मुकम्मल ज़िन्दगी’है!

आप को गर यकीं न आये,
तो अभी बंद करिये अपनी आँखें,
और मुकम्मल तन्हाई में,
कोशिश कीजिये,
समुन्दर को 

सुनने की,
सूघंने की ,
अपनी ज़िल्द पर उसकी,
ठंडी मगर खारी हवा,
को महसूस करने की,

यकीं मानिये,
समुन्दर से गहरा और शांत कुछ भी नही!
और हम सब,


फ़िरते है यहाँ से वहाँ
लिये  अपना अपना,
एक एक समुन्दर 
प्यासे और अशांत!  


और बेखबर भी कि,
हम सब एक समुन्दर है!




Thursday, April 14, 2011

तकलीफ़-ए-रूह!(एक बात बहुत पुरानी!)


चारागर मशरूफ़ थे ,ईलाज़े मरीज़े रूह में,
बीमार पर जाता रहा ,तकलीफ़ उसको जिस्म की थी।

बाद मरने के भी , कब्र में है बेचॆनी,

वो खलिश अज़ीब किस्म की थी।

किस्सा गो कहता रहा ,रात भर सच्ची बातें,
नींद उनको आ गई ,तलाश जिन्हे तिलिस्म की थी।

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शब्दार्थ:

चारागर : हकीम (Local Doctor)
मशरूफ़ :वयस्त ( Engaged)
खलिश :दर्द की चुभन (Pain)
किस्सा गो :कहानी सुनाने वाला (Story Teller)
तिलिस्म :जादू (Magic)




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