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Sunday, February 2, 2014

ज़िन्दगी!

दर्द की चट्टान से रिसती,
पानी की धार
ज़िन्दगी,

जून की दोपहर में,
चढता बुखार
ज़िन्दगी,

जागी आँखों में,
नींद का खुमार
ज़िन्दगी,

खुशी और ग़म की,
लटकती  तलवार,
ज़िन्दगी,

भरी आँखों के,
सावन में मल्हार,
ज़िन्दगी,

एक नये साज़ के,
टूटे से तार,
ज़िन्दगी,

सूखी फ़सल के बाद,
लाला का उधार,
ज़िन्दगी,

भूखे पेट,चोटिल जिस्म को,
माँ का दुलार ,
ज़िन्दगी,

बनावट के दौर में,
होना आँखों का चार,
ज़िन्दगी,

एक ख़फ़ा दोस्त की,
अचानक पुकार,
ज़िन्दगी,

Thursday, April 14, 2011

तकलीफ़-ए-रूह!(एक बात बहुत पुरानी!)


चारागर मशरूफ़ थे ,ईलाज़े मरीज़े रूह में,
बीमार पर जाता रहा ,तकलीफ़ उसको जिस्म की थी।

बाद मरने के भी , कब्र में है बेचॆनी,

वो खलिश अज़ीब किस्म की थी।

किस्सा गो कहता रहा ,रात भर सच्ची बातें,
नींद उनको आ गई ,तलाश जिन्हे तिलिस्म की थी।

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शब्दार्थ:

चारागर : हकीम (Local Doctor)
मशरूफ़ :वयस्त ( Engaged)
खलिश :दर्द की चुभन (Pain)
किस्सा गो :कहानी सुनाने वाला (Story Teller)
तिलिस्म :जादू (Magic)




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