हरि पुत्री बन कर तू उतरी
माँ गंगा कहलाई,
पाप नाशनी,जीवन दायनी
जै हो गंगा माई!
भागीरथी,अलकनंदा,हैं
नाम तुम्हारे प्यारे,
हरिद्वार में तेरे तट पर
खुलते हरि के द्वारे!
निर्मल जल
अमृत सा तेरा,
देह प्राण को पाले
तेरी जलधारा छूते ही
टूटें सर्वपाप के ताले!
माँ गंगा तू इतनी निर्मल
जैसे प्रभु का दर्शन,
पोषक जल तेरा नित सींचे
भारत माँ का आंगन!
तू ही जीवन देती अनाज में
खेतों को जल देकर,
तू ही आत्मा को उबारती
देह जला कर तट पर!
पर मानव अब
नहीं जानता,खुद से ही क्यों हारा,
तेरे अमृत जैसे जल को भी
कर बैठा विषधारा!
माँ का बूढा हो जाना,
हर बालक को खलता है,
प्रिय नहीं है,सत्य मगर है,
जीवन यूंही चलता है!
हमने तेरे आँचल में
क्या क्या नहीं गिराया,
"गंगा,बहती हो क्यूं?"भी पूछा,
खुद का दोष न पाया!
डर जाता हूं सिर्फ़ सोच कर,
क्या वो दिन भी आयेगा,
गंगाजल मानव बस जब,
माँ की आँखो में ही पायेगा!
डर जाता हूं सिर्फ़ सोच कर,
ReplyDeleteक्या वो दिन भी आयेगा,
गंगाजल मानव बस जब,
माँ की आँखो में ही पायेगा!
यह आशंका निराधार नहीं है.... बेहद सुंदर आरती है; माँ कि आँखें और गंगाजल... सुंदर विम्ब!
डर जाता हूं सिर्फ़ सोच कर,
ReplyDeleteक्या वो दिन भी आयेगा,
गंगाजल मानव बस जब,
माँ की आँखो में ही पायेगा!
waakai
डर जाता हू सिर्फ सोच कर क्या वो दिन आएगा गंगाजल मानाव्बस माँ की आँखों मैं पायेगा ..वह क्या बात ..ये संभव भी है
ReplyDeleteडर जाता हूं सिर्फ़ सोच कर,
ReplyDeleteक्या वो दिन भी आयेगा,
गंगाजल मानव बस जब,
माँ की आँखो में ही पायेगा!
badi achchi lagi.......
ReplyDelete♥
ktheLeo आदरणीय कुश शर्मा जी
सस्नेहाभिवादन !
गंगा मैया से संबंधित सुंदर रचना पढ़ कर भाव विभोर हो गया हूं…
निर्मल जल अमृत सा तेरा,देह प्राण को पाले
तेरी जलधारा छूते ही टूटें सर्वपाप के ताले!
मां गंगा तू इतनी निर्मल जैसे प्रभु का दर्शन,
पोषक जल तेरा नित सींचे भारत मां का आंगन!
बहुत सुंदर !
हमने तेरे आंचल में क्या क्या नहीं गिराया,
"गंगा,बहती हो क्यूं?"भी पूछा, खुद का दोष न पाया!
आहऽऽ… ! अत्यंत भावप्रवण !
इस सुंदर रचना के लिए हृदय से बधाई और आभार!
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार