मेरे तमाम गुनाह हैं,अब इन्साफ़ करे कौन.
कातिल भी मैं, मरहूम भी मुझे माफ़ करे कौन.
दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
कमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन.
हर बार लड रहा हूं मै खुद अपने आपसे,
जीतूंगा या मिट जाऊंगा, कयास करे कौन.
मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.
गर्दे सफ़र है रुख पे मेरे, रूह को थकान,
नफ़रत की हूं तस्वीर,प्यार बेहिसाब करे कौन.
माँ लक्ष्मी आपको कोटिश: नमन
और नमन के बाद,
खुली चुनौती है!
यदि आप ’सच में’
उस सत्य स्वरूप,
ईश्वर के प्रतिरूप
क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करते,
परम पूज्य, सदा स्मरणीय,
भक्त हृदय निवासी,
दीनानाथ,दीनबन्धु
के चरण कमलों की सदा सेवा का वरदान प्राप्त कर,
जगत जननी स्वरूपा हैं...
तो अबके बरस ,
झूंठ,पाखंड,कपट,छल,
और दम्भ से इतराती
महलों की अट्टालिकाओं से
प्रभु की अद्भुत रचना ’मानव’
के रचे खेल देखने की बजाय,
किसी भूखे मेहेनती,
या सच्चे जरूरती के झोपडें मे जाना ज़रूर,
क्यों कि उसकी आस्था,
उसकी गरीबी की पीडा की सीमायें लाँघ कर भी,
उसे आपकी आराधना को विवश करतीं हैं ,
माँ, कम से इतना तो हो ही सकता है,
"हैप्पी दिपावली" के अवसर पर!
यदि इस बार भी ऐसा न हुआ तो,
कलयुग फ़िर अट्टहास करते हुये,
ईश्वरीय आस्था के ह्रास का उद्घघोष कर देगा,
और अंधेरा , राम के पुनरागमन के बावजूद,
इस धरा पर अपने साम्राज्य के स्थाई होने का
ऐलान कर मुस्कुरायेगा!
माँ, लक्ष्मी छोटी बात है, आपके लिये,
और मैंने कौन सी BMW माँग ली अपने लिये,
या मेरी पत्नी कोई,
तनिष्क के चार कंगन मिलने के बाद भी,
सिर्फ़ एक और Diamond Ring की ख्वाहिश कर रही है...