मान लूँगा,
साल नया है,
अगर कल का अखबार शर्मिदा न करे! तो!
मान लूँगा,
अगर 01 जनवरी 2013 की शाम को कोई भी हिन्दुस्तानी भूखा न सोये!
मान लूँगा,
तुम सब अगर कसम खाओ के कम से कम आज कोई घूस नहीं खायेगा!
मान लूँगा,
अगर तुम मान लोगे कि ,
सिर्फ़ अपने अतीत में रहने वाली कौमें,कायम नहीं रह पातीं!
मैं कैसे मान लूँ साल नया है?
क्यों कि न नौ मन तेल होगा, और न राधा नाचेगी!
नाचे कैसे?
कैसे?
नाचे तो!
पर,
राधा को जीने दोगे तब न?
साल नया है,
अगर कल का अखबार शर्मिदा न करे! तो!
मान लूँगा,
अगर 01 जनवरी 2013 की शाम को कोई भी हिन्दुस्तानी भूखा न सोये!
मान लूँगा,
तुम सब अगर कसम खाओ के कम से कम आज कोई घूस नहीं खायेगा!
मान लूँगा,
अगर तुम मान लोगे कि ,
सिर्फ़ अपने अतीत में रहने वाली कौमें,कायम नहीं रह पातीं!
मैं कैसे मान लूँ साल नया है?
क्यों कि न नौ मन तेल होगा, और न राधा नाचेगी!
नाचे कैसे?
कैसे?
नाचे तो!
पर,
राधा को जीने दोगे तब न?
हम्म ... अगर जीने दे तब न ...
ReplyDeleteपुरुष समाज को सोचना होगा ... क्या भविष्य चाहता है वो ...
बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteनब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामना.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
राधा को जीने दोगे तब न?
ReplyDeleteवाह .................